सौरभ के करीबी चेतन गौर से भी इस संबंध में पूछताछ की गई है। इसके साथ ही विदेश में निवेश की जानकारी भी आयकर विभाग जुटा रहा है। हवाला का संदेह इसलिए भी हो रहा है कि ढाई-ढाई लाख रुपये वाली गड्डियां मिली हैं, जो हवाला में उपयोग होती हैं।
आरटीओ अधिकारियों और नेताओं से पूछताछ की तैयारी
आयकर की टीम ने भोपाल के मेंडोरी गांव में खड़ी एक कार में 54 किलो सोना, लगभग 10 करोड़ रुपये नकद के साथ एक डायरी भी मिली थी। इस डायरी में कई आरटीओ, चेक पोस्ट के अधिकारी और नेताओं के नाम हैं।
आयकर विभाग अब इन्हें भी पूछताछ के लिए बुलाने की तैयारी कर रहा है। यह कार सौरभ के सहयोगी चेतन के नाम पर है, पर उपयोग सौरभ ही कर रहा था। सोने के मामले में डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) को भी सूचना दी है।
वहीं, मंगलवार को मामले की पड़ताल के लिए भोपाल से लोकायुक्त की टीम ग्वालियर पहुंची। टीम के सदस्य हुरावली स्थित परिवहन मुख्यालय पहुंचे, जहां अधिकारियों से उससे जुड़ी जानकारी मांगी।
परिवहन विभाग में सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति को लेकर पड़ताल की जा रही है, इसके साथ ही मुख्यालय से लेकर पूरे विभाग में उसके नजदीकियों की जानकारी भी जुटाई। लोकायुक्त टीम ने ग्वालियर मे सौरभ के ठिकानों पर भी पड़ताल की।
दिग्विजय बोले- यह परिवहन घोटाला, पूर्व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह की भूमिका पर भी उठाए सवाल
इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने परिवहन घोटाला बताया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की निगरानी में इस मामले की जांच कराने की मांग की है।
साथ ही दिग्विजय सिंह ने इस प्रकरण में प्रदेश के पूर्व परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की भूमिका की जांच करने और सौरभ शर्मा और उसके सहयोगियों की गिरफ्तारी की बात भी उठाई।
वहीं, पूर्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने दिग्विजय द्वारा लगाए आरोप पर कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया। भोपाल में मंगलवार को पत्रकार वार्ता में दिग्विजय सिंह ने कहा कि जंगल में खड़ी कार में 52 किलोग्राम सोना, दो सौ किलोग्राम चांदी और 11 करोड़ नकद पाया जाना, इस बात का प्रमाण है कि परिवहन विभाग किस तरह से काली कमाई का माध्यम बना हुआ है।
दिग्विजय ने कहा कि प्रदेश में जब कमल नाथ की सरकार बनी थी, तब परिवहन और राजस्व विभाग गोविंद सिंह राजपूत को देने का दबाव था, तब किसकी कहां पदस्थापना होगी, इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बोर्ड गठित कर दिया था, लेकिन भाजपा सरकार में इस बोर्ड को भंग कर दिया गया।
सौरभ शर्मा वसूली का पूरा काम देखता था। ट्रांसफर-पोस्टिंग में इसकी भूमिका रहती थी। यदि इसकी गहराई से जांच की जाए तो यह पता चल जाएगा कि परिवहन चैकपोस्ट से जो काली कमाई होती थी, वह कहां-कहां बंटती थी।