भोपाल की 11 मील से बंगरसिया तक (भोजपुर रोड) 6 किमी सड़क 50 करोड़ रुपए से टू-लेन से फोर-लेन में बदलेगी। इससे पहले 200 पेड़ काटे जा रहे हैं। इनमें से ज्यादातर पेड़ यूकेलिप्टस के हैं।
पेड़ों की कटाई का काम शुरू हो चुका है। पीडब्ल्यूडी अफसरों के मुताबिक, जनवरी में सड़क का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा और अगले डेढ़ साल में भोजपुर रोड की तस्वीर पूरी तरह बदल जाएगी।
यह सड़क प्रदेश में एक मॉडल बनेगी। इस सड़क में एफडीआर (फुल डेप्थ रिक्लेमेशन) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा। इसका मतलब है कि मौजूदा सड़क के मटेरियल को रीयूज किया जाएगा।
अभी सड़क की स्थिति खराब, परेशान होते हैं श्रद्धालु
वर्तमान में 11 मील से बंगरसिया तक की सड़क की हालत काफी खराब है। यह सड़क धार्मिक नगरी भोजपुर को जोड़ती है। हर रोज हजारों लोग इस खराब सड़क से गुजरने के कारण परेशान होते हैं।
भोजपुर में दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। यहां हर साल भोजपुर महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें देश-विदेश के कवि, साहित्यकार और टीवी-फिल्म कलाकार शामिल होते हैं। हालांकि, 6 किमी लंबी सड़क के गड्ढे उन्हें परेशान कर देते हैं। यही समस्या श्रद्धालुओं के साथ भी होती है।
कई जिलों का रास्ता भी
11 मील से बंगरसिया तक सड़क बनने से रायसेन, विदिशा, बैतूल समेत कई जिलों के लोगों को भी बड़ी राहत मिलेगी।
टू लेन सड़क फोरलेन होगी
पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर संजय मस्के ने बताया कि भोपाल के 11 मील से बंगरसिया तक फोर-लेन सड़क बना रहे हैं। इसमें नई एफडीआर तकनीक का उपयोग किया जाएगा। सड़क तोड़ने से जो भी मटेरियल निकलेगा, उसे रीयूज किया जाएगा। यह प्रदेश में एक मॉडल रोड बनेगी। पेड़ काटने का काम शुरू हो गया है। जैसे ही यह काम पूरा होगा, सड़क निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
पेड़ के बदले चुकाए 80 लाख रुपए
6 किलोमीटर में करीब 200 पेड़ काटे जा रहे हैं, जिनमें ज्यादातर यूकेलिप्टस के पेड़ हैं। बदले में पीडब्ल्यूडी ने वन विभाग को 80 लाख रुपए चुकाए हैं। करीब एक साल से अनुमति नहीं मिलने के कारण मामला अटका हुआ था, लेकिन दिसंबर में अनुमति मिलने के बाद काम शुरू कर दिया गया है।
यह है एफडीआर टेक्नोलॉजी
फुल डेप्थ रिक्लेमेशन (एफडीआर) एक रिसाइक्लिंग पद्धति है, जिसमें कम संसाधनों में टिकाऊ सड़कें बनाई जाती हैं। खराब हो चुकी पक्की सड़क को उखाड़कर उससे निकले मटेरियल में केमिकल मिलाया जाता है, जिससे नया मटेरियल तैयार किया जाता है। इसे फिर सड़क निर्माण में उपयोग किया जाता है। इससे लागत भी कम आती है।