नई दिल्ली। राजस्व संग्रह कम होने से देश का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.6 प्रतिशत रहा जो सात साल का उच्च स्तर है। इससे पहले 2012-13 में राजकोषीय घाटा 4.9 प्रतिशत था। महालेखा नियंत्रक के आंकड़े के अनुसार वित्त वर्ष 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा 4.59 प्रतिशत रहा जो फरवरी में रखे गए 3.8 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से कहीं अधिक है। मूल रूप से बजट में इसके 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था। राजकोषीय घाटा में वृद्धि बताता है कि कर संग्रह कम रहने के कारण सरकार की उधारी बढ़ी है। आंकड़ों के अनुसार राजस्व घाटा भी बढ़कर 2019-20 में जीडीपी का 3.27 प्रतिशत रहा जो 2.4 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से अधिक है। बजट में इसके 2.3 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया था। सरकार के कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए 25 मार्च से लॉकडाउन के निर्णय से पिछले वित्त वर्ष के अंत में राजस्व संग्रह पर असर पड़ा। कुल मिलाकर सरकार की प्राप्तियां 17.5 लाख करोड़ रुपए रहीं जबकि सशोधित बजट अनुमान 19.31 लाख करोड़ रुपये का था। आंकड़ों के अनुसार सरकार का कुल व्यय 26.86 लाख करोड़ रुपए रहा जो पूर्व के 26.98 लाख करोड़ रुपए के अनुमान से कुछ कम है। पिछले वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी 1,08,688.35 करोड़ रुपए रही। यह संशोधित बजट अनुमान के बराबर है।
हालांकि पेट्रोलियम समेत कुल सब्सिडी कम होकर 2,23,212.87 करोड़ रुपए रही जो बजटीय अनुमान में 2,27,255.06 करोड़ रुपए थी। वित्त वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रहा। सरकार ने उस समय कहा था कि इसे 3.3 प्रतिशत के स्तर पर रख जा सकता था लेकिन किसानों के लिए आय सहायता कार्यक्रम (किसान सम्मान निधि) से यह बढ़ा है। सरकार ने एक फरवरी 2019 को 2019-20 का अंतरिम बजट पेश करते हुए किसान सम्मान निधि (किसानों को नकद सहायता) के तहत 20,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया। वहीं 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.8 प्रतिशत कर दिया गया था। सरकार ने राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएम) के तहत छूट प्रावधान का उपयोग किया। यह प्रावधान सरकार को दबाव के समय राजकोषीय घाटे की रूपरेखा में छूट की अनुमति देता है।