-आधा दर्जन से अधिक कांग्रेस के नेताओं ने बढ़ाई सक्रियता
भोपाल। 24 विधानसभा सीटों पर होने वाला उपचुनाव केवल हार-जीत का ही चुनाव नहीं है। बल्कि इस चुनाव में कई नेताओं का वजूद दांव पर होगा। खासकर ग्वालियर-चंबल अंचल में यह समय कांग्रेस में नए नेतृत्व के उदय का भी है। इसके लिए करीब आधा दर्जन से अधिक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रयासरत हैं।
गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। सिंधिया के जाने के बाद कांग्रेस में बचे नेता यह मान रहे हैं कि उन्हें महल की गुलामी से मुक्ति मिल गई है। बदले हुए समीकरणों में अंचल के कांग्रेस नेताओं में गॉड फादर की महत्वकांक्षा जागने लगी है। जिसके कारण कांग्रेस में गुटबाजी का पौध फिर से पनपे लगा है। सिंधिया के कारण सीमित दायरे में रहने वाले पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह, प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत, अशोक सिंह, केपी सिंह, लाखन सिंह व विधायक प्रवीण पाठक की महत्वकांक्षाएं बढ़ी हैं। बालेंदु शुक्ला भी अपने गुजरे कल को लौटाने के लिए जोर लगाने लगे हैं। इन क्षत्रपों के बीच गॉड फदर बनने की जंग शुरू हो गई है।
पहले सिर्फ सिंधिया थे गॉड फादर
तीन माह पहले तक ज्योतिरादित्य सिंधिया गॉड फदर माने जाते थे। कांग्रेस में संगठन में नियुक्ति से लेकर टिकट वितरण तक में महल का फैसला अंतिम माना जाता था। जब तक दिल्ली से कोई सीधे फेरबदल नहीं हो। जिसके कारण गिनती के दिग्विजय सिंह समर्थकों को छोड़कर कांग्रेसी महल के सामने नतमस्तक नजर आते थे। सिंधिया के पार्टी छोड़ते ही यह नेता फ्री हैंड हो गए हैं।
क्षत्रपों के बीच ग्वालियर को लेकर खींचतान
क्षत्रपों के बीच मूल झगड़ा ग्वालियर को लेकर है। यहां अशोक सिंह अपना वर्चस्व बनाने में लगे हैं। ग्वालियर में डॉ. गोविंद सिंह भी अपना दखल रखना चाहते हैं। चूंकि दोनों दिग्विजय सिंह खेमे के हैं, इसलिए दोनों के बीच कैमेस्ट्री जम सकती है। लेकिन विधायक पूर्व मंत्री रामनिवास रावत भी यहां अपना दखल रखना चाहते हैं। इसलिए वह जिले की नियुक्तियों में रूचि दिखा रहे हैं। लेकिन कमलनाथ की मौजूदगी में हुई मीटिंग में रामनिवास रावत को विधायक प्रवीण पाठक व अशोक शर्मा के खुले विरोध का सामना करना पड़ा। प्रवीण पाठक ने यहां तक कह दिया कि मैं आपके श्योपुर में दखल दूं तो कैसा लगेगा। उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया कि वह अपने क्षेत्र में किसी तीसरे की दखल बर्दाश्त नहीं करेंगे। डॉ. गोविंद सिंह भिंड में रामनिवास रावत मुरैना-श्योपुर, केपी सिंह गुना-शिवपुरी देखें किसी को ऐतराज नहीं है। मुश्किल यह है कि ग्वालियर में स्वीकार्यता के बिना कोई गॉड फादर नहीं बन सकता है। इसलिए क्षत्रपों के बीच खुली जंग शुरू हो गई है।
कमलनाथ व दिग्विजय सिंह में से कौन
इसमें कोई दो मत नहीं कि दिग्विजय सिंह डेढ़ दशक तक इस प्रदेश के सीएम रहे। प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन उनकी महत्वकांक्षा राजनीति में सिंधिया राजघराने की तरह अपना वर्चस्व स्थापित करने की है। दूसरी तरफ कमल नाथ छिंदवाड़ा में खुश थे। लेकिन सीएम की कुर्सी छीनने के बाद उनके मन में टीस है और वह भी प्रदेश के सर्वमान्य नेता बनने की दौड़ में शामिल हो गए हैं। इसलिए दिग्विजय के साथ कमल नाथ की रूचि भी ग्वालियर-अंचल में बढ़ गई है। क्योंकि उन्हें राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी मात यहीं मिली है।