लंदन । जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अब दुनिया में नजर आने लगे हैं। नए शोध में वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के सार्थक प्रयास नहीं किए गए,तब साल 2100 तक उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मी के मौसम की मियाद छह महीने तक होगी। इसका कृषि, मानव स्वास्थ्य, जमीन और महासागरों के पारिस्थितिकी तंत्र तक पर्यावरण में गहरा असर देखने को मिल सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि भूमध्यसागर इलाके और तिब्बत के पठार ने मौसमी चक्र के बदलावों में सबसे ज्यादा परिवर्तन देख हैं। ऐसा नहीं है कि तब तक दिन लंबे या ज्यादा चमकीले होने लगेगा,लेकिन मौसम में यह बदलाव परिस्थितिकी तंत्र को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाने में सक्षम हो जाएगा,जिसमें अभी तक समय और तापमान में गहरा संतुलन देखने को मिलता आ रहा था।
आमतौर पर उत्तरी गोलार्द्ध में साल भर में चार मौसम पाए जाते हैं। वसंत, गर्मी, पतझड़ और सर्दी, ये चार मौसम भारत के मौसमों से अलग हैं, लेकिन भारतीय जलवायु के पूरी तरह प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि 1950 के दशक में इन चार मौसमों के आने के समय का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता था, क्योंकि ये बहुत ही नियमित तौर से आते जाते थे। लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इनमें असामान्य बदलाव कर इन्हें अनियमित बना दिया है, भविष्य में ये चरम प्रभाव वाले हो सकते हैं। अध्ययन के प्रमुख का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण गर्मी लंबी और बहुत ज्यादा गर्म होने लगी है, जबकि सर्दियां कम और गर्म होने लगी हैं। शोधकर्ताओं ने साल 1952 से 2001 तक के उत्तरी गोलार्द्ध के दैनिक जलवायु आंकड़ों का अध्ययन किया और चारों मौसमों में बदलाव और लंबाई का अध्ययन किया।
उन्होंने गर्मी की शुरआत को उस समय के 25 प्रतिशत सबसे गर्म तापमान को माना, जबकि सर्दी की शुरुआत को उस समय के 25 प्रतिशत ठंडे तापमान वाले दिन को माना। भविष्य में मौसमों में कैसा बदलाव होगा इसका अनुमान लगाने के लिए टीम ने स्थापित जलवायु मॉडल उपयोग किए। उन्होंने पाया कि 1952 से 2011 तक गर्मी का मौसम औसतन 78 से 95 दिन तक बढ़ गया, सर्दी सिकुड़कर 76 से 73 दिन आ गई, वसंत 124 से 115 दिन और पतझड़ 87 से 82 दिन तक सिमट गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि वसंत और गर्मी पहले शुरू होने लगीं जबकि पतझड़ और सर्दी बाद में आने लगीं। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर हुए बहुत सारे अध्ययन पहले ही दर्शा चुके हैं कि मौसमों में बदलाव पर्यावरण और स्वास्थ्य जोखिमों का बड़ा कारण बन जाते हैं।