वाशिंगटन । हवा में कोरोना वायरस की मौजूदगी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से लेकर वैज्ञानिकों ने कई खुलासे किए हैं। परंतु किसी ने ये नहीं बताया कि हवा में जेनेटिक मैटेरियल के साथ ही वायरस भी जिंदा रहता है। वहीं दूसरी ओर यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिकों को अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों से सात से 16 फुट की दूरी पर एरोसोल में मौजूद जिंदा वायरस को आइसोलेट करने में कामयाबी मिली है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों में बदलाव की सलाह दी है।
एक लीटर हवा में वायरस के 74 कण
वायरोलॉजिस्ट डॉ. जॉन लेडनिकी का कहना है कि जिस कमरे में वायरस को आइसोलेट किया गया वहां पर हर एक घंटे में छह बार हवा बदली जाती थी। इसके बावजूद एक लीटर हवा में वायरस के 74 कण मिले। जहां वेंटिलेशन यानी झरोखा नहीं होते हैं वहां पर हवा में वायरस बड़ी संख्या में मिल सकते हैं।
दो सैंपलर में पकड़े गए जिंदा वायरस
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के शैंड्स अस्पताल के वैज्ञानिकों ने ये सैंपल कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित वार्ड के एक कमरे से आइसोलेट किया है। वायरस को पकडऩे के लिए दो सैंपलर का प्रयोग किया। एक को मरीज से सात फुट तो दूसरे को 16 फीट दूर रखा गया था। दोनों सैंपलर में वायरस मिले जो कोशिकाओं को संक्रमित करने में पूरी तरह सक्षम थे। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी की वायरोलॉजिस्ट डॉ. एंजेला रासमुसेन का कहना है 'मुझे नहीं लगता कि जितनी संख्या में वायरस मिले हैं वो किसी व्यक्ति में संक्रमण फैलाने के लिए पर्याप्त हैं।Ó यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्र्सबर्ग की श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. सीमा लकड़वाला ने कहा, नतीजों से अब अधिक सावधान रहना होगा। वे कहती हैं कि जब सैंपल लिया जाता है तो उसमें वायरस से 100 गुना ज्यादा उसका आरएनए होता है।
घर में भी सुरक्षित नहीं
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय की एटमॉसफेरिक केमिस्ट डॉ. रोबिन स्कोफील्ड का कहना है कि कमरे में दूरी का नियम काम नहीं करता है। छह फुट की दूरी कोई मायने नहीं रखती। जो लोग ये समझ रहे हैं कि वो घर में सुरक्षित हैं ऐसा बिलकुल नहीं है।