लंदन । अंतरिक्ष के शून्य में भी आंधी तूफान जैसे भयावह बवंडर जारी है ऐसे ही एक शक्तिशाली जियोमैग्नेटिक तूफान के धरती की ओर आने खबर है। सूरज से आने वाली इन हवाओं के साथ सोलर पार्टिकल 500 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से स्पेस में चल रहे हैं। इसकी वजह से धरती के सैटलाइट पर निर्भर उपकरणों में बाधा हो सकती है। धरती के ऊपरी वायुमंडल के गर्म होने से ये सैटलाइट सिग्नल्स को धरती में पहुंचने में बाधा डाल सकते हैं। नोआ के विशेषज्ञों का कहना है कि इनकी वजह से आर्कटिक ऑरोरा पैदा हो सकता है।
इस तूफान की वजह से पावर लाइन्स में बिजली ज्यादा तेजी से भाग सकती है जिससे ट्रांसफॉर्म उड़ सकते हैं और बिजली गुल हो सकती है। ऐसे तूफान को जी-2 क्लास में रखा जाता है। ऑरोरा वह रोशनी होती है जो धरती के मैग्नेटोस्फीयर में सोलर विंड के टकराने से पैदा होती है। नीले और हरे रंग की रोशनी एक दिलकश नजारा पेश करती है जिसे देखने के लिए लोग इंतजार में रहते हैं। ये उत्तरी गोलार्ध में या ऑरोरा बोरियैलिस की शक्ल में आसमान में अद्भुत छटा बिखेरते हैं। तेज तूफान से ज्यादा तेज चमक वाले ऑरोरा देखने को मिल सकते हैं।
सौर तूफानों का असर सैटलाइट पर आधारित टेक्नॉलजी पर भी हो सकता है। सोलर विंड की वजह से धरती का बाहरी वायुमंडल गरमा सकता है जिससे सैटलाइट्स पर असर हो सकता है। इससे जीपीएस नैविगेशन, मोबाइल फोन सिग्नल और सैटलाइट टीवी में रुकावट पैदा हो सकती है। पावर लाइन्स में करंट तेज हो सकता है जिससे ट्रांसफॉर्मर भी उड़ सकते हैं। हालांकि, आमतौर पर ऐसा कम ही होता है क्योंकि धरती का चुंबकीय क्षेत्र इसके खिलाफ सुरक्षा कवच का काम करता है। आखिरी बार इतना शक्तिशाली तूफान 1859 में आया था जब यूरोप में टेलिग्राफ सिस्टम बंद हो गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि सौर्य तूफानों को स्टडी किया जाना और उनसे अपनी टेक्नॉलजी और उपकरणों को बचाना बेहद जरूरी है। ये रेडिएशन ट्रिलियन डॉलर का नुकसान धरती को पहुंचा सकते हैं और इनकी वजह से ध्वस्त हुआ इन्फ्रास्ट्रक्चर दोबारा खड़ा करने में कई साल लग सकते हैं।