अंतरिक्ष में भारत का दबदबा बढ़ता देख चीन बनाएगा कॉमर्शियल स्पेसपोर्ट

Updated on 18-03-2021 08:51 PM

बीजिंग भारत ने अब तक 34 देशों के 342 सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित किए हैं। व्यावसायिक गतिविधियों को इसरो को फायदा भी होता है। इसे देखकर चीन को जलन होने लगी है। उसने सैटेलाइट प्रक्षेपित करने के इच्छुक देशों और प्राइवेट स्पेस कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कामर्शियल स्पेसपोर्ट बनाने की पहल की है, ताकि उसकी स्पेस इंडस्ट्री को गति दी जा सके। चीन ने अपने 14वीं पंचवर्षीय योजना (साल 2021 से 2025) में इस प्रोजेक्ट को शामिल किया है। इसके जरिए वह देश में निजी स्पेस गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहता है। फिलहाल चीन के पास चार लॉन्च सेंटर्स हैं। ये सेंटर्स चाइना एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी कॉर्प (सीएएससी) के लॉन्ग मार्च रॉकेट्स को लॉन्च करती हैं। यह चीन का सबसे बड़ा स्पेस कॉन्ट्रैक्टर है। अगर स्पेस गतिविधियां बढ़ेंगी तो लॉन्च सेंटर्स की कमी होगी, इसलिए कॉमर्शियल स्पेसपोर्ट बनाने की योजना है। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के उप-प्रमुख डोउ जियाओयू ने कहा फिलहाल चीन सिर्फ देश के लिए स्पेस लॉन्च करता है। निजी कंपनियों की भागीदारी कम है, लेकिन अब स्पेस इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए हम कॉमर्शियल स्पेस पोर्ट का निर्माण करेंगे। हम घरेलू स्पेस लॉन्च को बढ़ावा देना चाहते हैं। यहां कई निजी कंपनियां इसमें रुचि ले रही हैं।

सीएएससी की सब्सिडियरी कंपनी एक्सस्पेस ने कॉमर्शियल मकसद के लिए कुआईझोउ सीरीज के सॉलिड रॉकेट्स बना रही है, ताकि इंटरनेट जैसी सुविधाओं के लिए लो-अर्थ ऑर्बिट में रॉकेट लॉन्च किए जा सकें। इन सैटेलाइट्स का नाम जिंगयुन है। वह मीथेल-लिक्विड ऑक्सीजन प्रोपेलेंट वाला इंजन भी बना रहा है। चीन का यह कदम अप्रत्याशित नहीं है। चीन की सरकार ने सन 2018 में ही कहा था कि वह कॉमर्शियल स्पेसपोर्ट तैयार करेगी। जिसमें सरकारी स्पेस एजेंसी और निजी कंपनियां मिलकर एकसाथ सैटेलाइट लॉन्च कर सकेंगी। चीन ने निजी स्पेस कंपनियों के लिए बाजार 2014 में खोला था। इसके बाद चीन में लैंडस्पेस, आईस्पेस, वनस्पेस और गैलेक्टिक एनर्जी जैसी कंपनियां सामने आईं। इस समय चीन में दर्जनों स्पेस इंडस्ट्री से संबंधित कंपनियां हैं, जो अपने-अपने लॉन्च के लिए चीन की सरकार से लगातार बात कर रही हैं, लेकिन लॉन्च पैड्स और रॉकेट्स पर्याप्त होने की वजह से चीन इनकी लॉन्चिंग नहीं कर पा रहा था। इसीलिए चीन ने कॉमर्शियल स्पेसपोर्ट बनाने का फैसला लिया है।

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