बिलासपुर । पंद्रह बरस तक सत्ता सुख भोगने के बाद सत्ता से वंचित बीजेपी के नेता,अब युवा मोर्चा के लिए काबिल कार्यकर्ताओ की तलाश कर रहे है, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें योग्य युवा नहीं मिल पा रहे है। काबिले गौर करनें वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी देश और आगे बढ़ाने वाले नेताओं को अब तेज तर्रार और आक्रामक कार्यकर्तों की तलाश है। वह भी ऐसे जो पार्टी के बड़े नेताओं के इशारे पर लाठीडंडा खाने के लिए भी तैयार रहे। पार्टी के नेताओं को अब कांग्रेस की सरकार से टक्कर लेने के लिए आक्रामक युवाओ की फ़ौज चाहिए। यही कारण है कि पार्टी ने सबसे पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा के पुनर्गठन की तैयारी में है। तलाश की तैयारी में महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सबसे पहले युवा मोर्चा में नियुक्ति के लिए उम्र की सीमा घटाकर 35 कर दी गई है। फिर भी पिछलग्गू कार्यकर्ताओ को आगे बढ़ाने वाले नेताओं को अब ऐसे युवा नेता नही मिल रहे है जो अपने आक्रामक तेवर से प्रदेश में संगठन को खड़ा कर सके, अगले तीन सालों में सरकार के खिलाफ माहौल बना सके और जरूरत पडऩे पर पुलिस की लाठी-डंडा भी खा सके। तकरीबन महीने भर से पार्टी के नेता सभी जिलों में युवा मोर्चा के गठन करने के लिए दौड़ भाग कर रहे है। लेकिन उन्हें काबिल युवाओं की फ़ौज नही मिल पा रही है। किसी किसी जिले में दो-चार युवा मिल भी जा रहे है तो पूरी कार्यकारिणी नही बन पा रही है। क्योंकि भाजयुमो का गठन करने के लिए प्रत्येक जिले में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री समेत कई पदों के लिए कम से कम 40 युवाओं की टीम चाहिए। पार्टी सूत्रों की माने तो काबिल कार्यकर्ताओ की कमी के कारण प्रदेश के 29 जिलों में युवा मोर्चा की नियुक्ति अटकी हुई है। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी देश और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। छत्तीसगढ़ में ही पार्टी के लगभग 25 लाख से ज्यादा कार्यकर्ता है। जिसमे भारतीय जनता पार्टी, महिला मोर्चा, युवा मोर्चा, किसान मोर्चा, व्यापारी प्रकोष्ठ और झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ समेत दर्जनभर प्रकोष्ठ और अनुषांगिक संगठन के कार्यकर्ता शामिल है। इसके बाद भी काबिल कार्यकर्ताओं का न मिलना पार्टी नेताओं के लिए चिंता और चिंतन का विषय बना हुआ है। खैर छत्तीसगढ़ में पिछले दो सालों से बीजेपी नेता और कार्यकर्ता विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस सरकार का विरोध करते कम ही नजर आए हैं ऐसे में राजनीति के महारथियों मानना है कि पिछले 15 साल सत्ता के नशे में मदमस्त नेताओं को अपने ज़मीनी कार्यकर्ताओं की याद नहीं आई और सत्ता हाथ से निकलते ही सत्ता की खुमारी टूटते ही अब सबसे पहले कार्यकर्ताओं को याद किया जा रहा है सच ही तो है युद्ध में सैनिक ही काम आते हैं।