लंदन । पहली बार एक गिद्ध को कृत्रिम पैर लगाने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली। मिया नाम का ये गिद्ध दुर्लभ प्रजाति का है, जिसे कम होती संख्या के कारण इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट में डाला गया है। अब तक कृत्रिम पैर लगाने की ये तकनीक इंसानों पर सबसे ज्यादा असरदार रही थी लेकिन इस कामयाबी को नया पड़ाव माना जा रहा है। मिया में ऑसियोइंटिग्रेशन नाम की तकनीक से पैर लगाया गया। इस तकनीक में सीधे स्टेलटन से हड्डी जोड़ी जाती है। एक हादसे में गिद्ध का दायां पैर जख्मी हो गया था। इसका असर उसके जीवन पर पड़ता। असल में गिद्ध प्रजाति के साथ होता ये है कि अगर किसी दुर्घटना में उनका कोई भी अंग जख्मी हो जाए तो इसका असर सीधा उनकी उड़ान पर होता है। इससे वे दूर तक जाकर अपना भोजन नहीं खोज पाते हैं और पोषण की कमी के कारण आखिरकार उनकी मौत हो जाती है।
इस घायल गिद्ध के साथ भी ऐसा हो सकता था। यही देखते हुए वैज्ञानिकों ने कृत्रिम पैर जोड़ने की सोची। इसके लिए पहले गिद्ध के दाहिने पैर का निचला हिस्सा काटकर अलग किया गया ताकि जहर न फैले। इसके साथ ही नकली पैर जोड़ने पर काम चलता रहा। बता दें कि गिद्ध के जीवन का बड़ा हिस्सा चलने और उड़ने में ही बीतता है। ऐसे में बगैर शोध महज एक पैर जोड़ देना उसके लिए बेकार भी साबित हो सकता था। यही कारण है कि पहले मिया का वजन लिया गया। देखा गया कि दूसरा पैर किस कोण पर और कैसे काम करता है। साथ ही इसका वजन बिल्कुल असल पैर जितना हो, इसका ध्यान रखना था। इसके अलावा भी कई चुनौतियां थीं। जैसे नकली पैर को इतना मजबूत बनाना कि गिद्ध जब बेहद तेजी से उड़ते हुए एकाएक जमीन पर उतरे तो ये वो शॉक और गिद्ध का वजन झेल सके। ये भी डर था कि अगर अलग होने वाला पैर लगाया जाए तो ये उड़ान से नीचे आते हुए टूटफूट सकता है।
ये गिद्ध के लिए काफी खतरनाक हो सकता था। तो हुआ ये कि ऐसा पैर तैयार हुआ, जो गिद्ध की हड्डी से सीधे जुड़ सके। साथ ही नीचे उतरने के दौरान ये झटका झेल सके, इसके लिए शॉक एबजॉर्बर जैसी तकनीक अपनाई गई। ये ठीक वैसा ही है, जैसे गाड़ी के तेजी से चलने पर लगने वाले झटकों से बचाने वाली तकनीक। ये सारी रिसर्च और कृत्रिम पैर बनाने का काम मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ विएना की टीम ने किया। कई रिकंस्ट्रक्शन के विशेषज्ञ इस टीम में थे, जिन्होंने मिलकर काम का अंजाम दिया। सर्जरी के लिए मिया को बेहोशी की दवा दी गई। सर्जरी से पैर लगाने में लगभग 2 घंटों का समय लगा लेकिन आखिरकार ये सफल रही। अब मिया दोनों पैर से चल-फिर पाता है।