लंदन । धरती के बाहर जीवन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों को एक एस्टरॉइड पर बेहद अहम साक्ष्यों का पता चला है। धरती पर जीवन के लिए अहम ऑर्गैनिक मैटर पहली बार एक ऐस्टरॉइड पर पाया गया है। लंदन की रॉयल हॉलोवे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऐस्टरॉइड इटोकावा से मिले सैंपल के अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
सन 2010 में जापान की एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए) का पहला हायाबूसा मिशन धूल का यह कण लेकर आया जिससे अध्ययन किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह ऑर्गैनिक मैटर एस्टरॉइड पर ही बना है, किसी टक्कर की वजह से नहीं। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि यह अरबों साल में केमिकल विकास के साथ पैदा हुआ है। इस खोज के साथ ही धरती पर जीवन कैसे शुरू हुआ, इस पर रुख भी बदल सकता है।
स्टडी करने वाली ब्रिटेन की टीम के मुताबिक पहली बार किसी एस्टरॉइड की सतह पर ऐसा मटीरियल मिला है। टीम का कहना है कि यह एक बड़ी खोज है जो हमारे ग्रह पर जीवन के इतिहास को दोबारा लिख सकती है। दरअसल, ऐस्टरॉइड पर ऑर्गैनिक मैटर का मिलना धरती पर जीवन के विकास जैसा लगता है। स्टडी के लीड रिसर्चर डॉ. क्वीनी चान ने बताया, ऑर्गैनिक मैटर से सीधे-सीधे जीवन होने का पता नहीं चलता है, लेकिन इससे पता चलता है कि धरती पर जीवन पैदा होने के लिए शुरुआती मटीरियल ऐस्टरॉइड पर मौजूद है।
इटोकावा अरबों साल से अंतरिक्ष की दूसरी स्पेस-बॉडीज से मटीरियल लेकर पानी और ऑर्गैनिक मैटर बना रहा है। अध्ययन में बताया गया है कि पहले किसी विनाशकारी घटना में एस्टरॉइड बहुत ज्यादा गर्म हुआ होगा, इसका पानी खत्म हो गया होगा और फिर यह टूट गया होगा। इसके बावजूद इसने जैसे खुद को दोबारा बनाया और स्पेस से आती धूल या कार्बन से भरे उल्कापिंडों की मदद से इस पर फिर से पानी बनने लगा।
इस अध्ययन में दिखाया गया है कि एस-टाइप एस्टरॉइड, जहां से ज्यादातर ऐस्टरॉइड धरती पर आते हैं, उन पर जीवन के लिए जरूरी मटीरियल होते हैं। चान ने बताया कि कार्बनेशनस ऐस्टरॉइड्स की तरह इन चट्टानी एस्टरॉइड्स पर कार्बन से भरा मटीरियल भले ही ज्यादा न हो, लेकिन उनकी केमिस्ट्री और पानी की मात्रा हमारी शुरुआती धरती जैसी होती है। खास बात यह है कि अगर हमारे ब्रह्मांड में धरती जैसा कोई और ग्रह हो, तो वहां इटोकावा जैसा ऐस्टरॉइड जीवन पैदा कर सकता है। अब धरती पर जीवन की उत्पत्ति के लिए सी-टाइप कार्बन से भरे एस्टरॉइड्स पर ध्यान दिया जाता है।
डॉ. चान ने बताया कि इस खोज से एस्टरॉइड्स से सैंपल धरती पर लाने की अहमियत का पता चलता है। इटोकावा की धूल के सिर्फ एक कण, जिसे एमेजन नाम दिया गया है, इसकी स्टडी ने गर्म होने से पहले के प्रिमिटिव और गर्म हो चुके प्रोसेस्ट ऑर्गैनिक मैटर को संभालकर रखा है। इससे पता चला है कि एस्टरॉइड को कभी 600 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना करना पड़ा था। डॉ. चान का कहना है कि प्रिमिटिव ऑर्गैनिक मैटर को देखकर कहा जा सकता है कि यह तब इस पर पहुंचा होगा जब ऐस्टरॉइड ठंडा हो चुका था।