न्यूयार्क । हमारा सौर मंडल कैसे बना? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एक और मिशन तैयार किया जा रहा है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा अरबों मील दूर एक प्रोब भेजेगी जो इसका पता लगाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और नासा का यह मिशन हीलियोस्फीयर तक 2030 के दशक की शुरुआत में प्रोब भेजेगा।हीलियोस्फीयर सूरज और ग्रहों का बाहर मौजूद एक घेरा होता है जहां सौर-तूफन चलते हैं। वोयेजर्स में लगे उपकरण ने मिशन को लेकर सीमित डेटा दिया है। इसलिए यह जरूरत महसूस की गई कि दूसरे मिशन की जरूरत है जो नई परतें खोल सके। इसे फिलहाल इंटरस्टेलर प्रोब नाम दिया गया है। स्पेस एजेंसी इसे 1000 ऐस्ट्रोनॉमिकल यूनिट दूर भेजना चाहती है जो धरती और सूरज के बीच की दूरी से 1000 गुना ज्यादा है। मिशन के तहत हीलियोस्फीयर की तस्वीरें ली जाएंगी और हो सकता है कि ऐसी बैकग्राउंड लाइट देखी जा सके जो गैलेक्सीज की शुरुआत से आती है लेकिन धरती से नहीं देखी जा सकती। गैलेक्सीज से निकलने वाली कॉस्मिक रेज से हमारे सौर मंडल को हीलियोस्फीयर बचाता है। साल के आखिर तक टीम नासा को प्रॉजेक्ट की आउटलाइन, उपकरण का पेलोड, ट्रैजेक्ट्री जैसी चीजें दे देगी। लॉन्च के बाद प्रोब को 15 साल लगेंगे हीलियोस्फीयर की सीमा पर पहुंचने में।