लंदन । अप्रैल 2021 में दुनियाभर में पिंक सुपरमून देखा गया था और अब एक माह बाद 26 मई को दूसरा सुपरमून दिखाई देगा, जो पहले से भी ज्यादा खास है। अगले हफ्ते दिखने वाले सुपरमून पर ग्रहण भी लगेगा, जिससे यह न सिर्फ आकार में बड़ा बल्कि और भी ज्यादा लाल नजर आएगा। चांद के इस बदलते रंग के पीछे वजह क्या है और क्या यह भारत में दिखाई देगा?
जब चांद धरती के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा में धरती के बेहद करीब होता है, तो वह बहुत बड़ा दिखता है। 26 मई को भी यही होगा। धरती के निकट होने की वजह से वह काफी तेज चमकता दिखाई देगा। ग्रहण की वजह से लाल रोशनी में डूबा चांद करीब 14 मिनट 30 सेकंड के लिए दिखेगा। पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब सूरज, धरती और चांद एक लाइन में होते हैं। ग्रहण के वक्त धरती सूरज और चांद के बीच में आती है। इससे सूरज की रोशनी चांद तक नहीं पहुंच पाती है और चांद अंधेरा नजर आता है। लेकिन यह पूरी तरह गायब नहीं होता। धरती के वायुमंडल से टकराने पर सूरज की रोशनी में से ज्यादा वेवलेंथ वाली लाल और नारंगी रोशनी चांद पर पड़ती है और बन जाता है 'ब्लड मून'।
वायुमंडल में मौजूद कणों के आधार पर यह नारंगी या लाल से लेकर भूरे रंग का भी हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि ग्रहण के दौरान पहले चांद धरती की बाहरी छाया में दाखिल होता जिसे पेनम्ब्रा कहते हैं। जब वह धरती की अंदरूनी छाया में दाखिल होता है, तभी लाल दिखाई देता है।
ग्रेनिच की रॉयल ऑब्जर्वेटरी के मुताबिक पूर्ण चंद्र ग्रहण दो से तीन साल में एक बार होता है। यह ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी हिस्से और दक्षिणपूर्व एशिया में दिखाई देगा। भारत में यह ग्रहण पेनम्ब्रा फेज में ही दिखेगा, इसलिए यहां से लाल रंग का नहीं दिखेगा।
सामान्य से बड़े और चमकीले चांद को सुपरमून नाम 1979 में रिचर्ड नोल ने दिया था। इससे पहले 26 अप्रैल को दिखा चांद सुपर पिंक मून था। साल 1930 में मेन फार्मर अलमेनक ने अमेरिकन इंडियन मून नेम छापने शुरू किए। इसके मुताबिक अप्रैल का फुल मून पिंक मून कहलाता है। पिंक मून के अलावा इसे स्प्राउटिंग ग्रास मून, एग मून, फिश मून जैसे कई नाम किए गए हैं। वहीं, हिंदुओं में इसे हनुमान जयंती के तौर पर मनाया जाता है।