बिलासपुर । भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस आयोजित किया जाएगा। मतदाता दिवस के दिन निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी एवं सहायक प्रोग्रामर पुरस्कृत किये जायेंगे। संभागायुक्त डॉ.संजय अलंग की अध्यक्षता में पुरस्कारों के चयन के लिये आज संभागीय चयन समिति की बैठक संभागायुक्त कार्यालय में आयोजित की गई।
चयन समिति में अध्यक्ष के अतिरिक्त कलेक्टर, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नामांकित अधिकारी एवं उपायुक्त कमिश्नर कार्यालय को सदस्य मनोनीत किया गया है।
आज आयोजित बैठक में राज्य निर्वाचन आयोग से उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी दुष्यंत राय, कलेक्टर की ओर से प्रतिनिधि के रूप में अपर कलेक्टर श्रीमती नुपूर राशि पन्ना एवं उपायुक्त श्रीमती अर्चना मिश्रा बैठक में सम्मिलित हुए। जिलों से प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर समिति द्वारा पुरस्कार के लिये नामांकित निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी एवं सहायक प्रोग्रामर के एक-एक प्रतिभागी का प्रस्ताव तैयार कर राज्य निर्वाचन आयोग में प्रेषित किया जाएगा।
महिला बाल विकास विभाग और स्वैच्छिक संस्थाओं के कार्यकलापों पर लगा प्रश्नचिन्ह
जिले के महिला बाल विकास विभाग के अंतर्गत काम कर रहे स्वैच्छिक संगठनों में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। 1 वर्ष के भीतर तीन स्वैच्छिक संगठनों के कार्यकलापों पर प्रश्नचिन्ह लगा है ऐसा लगता है कि विभाग के अधिकारी जिन पर स्वैच्छिक संगठनों के मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी है वह अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाते हैं । पहला उदाहरण है अपना घर का विभाग के साथ अपना घर एनजीओ के इतने मतभेद हुए की भारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच संस्था बंद हो गई यहां तक कि अंत में पुलिस बल भेजकर एचआईव्ही पीडि़त हितग्राहियों को बलपूर्वक संस्था से निकालना पड़ा एनजीओ के पक्षधरो और पुलिस के बीच हाथापाई भी हुई एक महिला वकील को तो पुलिस ने अपने साथ रख कर घंटों घुमाया और देर रात एक कोर्ट में पेश कर जमानत दी। दूसरा मामला घुमंतू लड़कों के सेलटर हाउस का है कई साल तक इस योजना को मनमर्जी तरीके से डिंडेश्वरी एनजीओ ने चलाया और अभी इस काम से अपने हाथ खींच लिए हैं बताया जाता है कि स्वैच्छिक संस्था का पदाधिकारी पूर्व भाजपा सरकार के एक मंत्री का खासम खास था उसके संस्थानों की जांच भी नहीं होती थी मनमर्जी तरीके से काम किया और अब सत्ता परिवर्तन होने पर संस्था को बंद कर दिया। तीसरा मामला उज्जवला होम का आ रहा है इस स्वैच्छिक संस्था को वर्ष 2009 से विभागीय मान्यता प्राप्त है हर साल लंबी रकम अनुदान में प्राप्त होती है किंतु स्वैच्छिक संस्था नियमों से स्वयं को ऊपर मानती है संस्था का पदाधिकारी स्वयं को ऊंची राजनीतिक पहुंच वाला बता कर नियमों की परवाह नहीं करता जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसी संस्थाओं पर निरीक्षण नहीं करते महिला बाल विकास विभाग को रेडी टू ईट से ही फुर्सत नहीं है ऊपर से स्वैच्छिक संस्थाओं के पदाधिकारी लंबी रिश्वतखोरी का आरोप भी लगाते हैं। ऐसा आरोप अपना होम के पदाधिकारी श्री ठक्कर ने खुल्लम-खुल्ला लगाए थे उन्होंने तो सीधे शब्दों में कहा था कि कार्यक्रम अधिकारी ने लाखों रुपए रिश्वत के मांगे ना मिलने पर एक ईमेल भेजकर संस्था को बंद करने को कह दिया ।उज्वला होम में भी पुलिस ने शिकायत दर्ज की है किंतु विभाग के निरीक्षण में क्या पाया इसकी जानकारी नहीं है विभाग के अधिकारी मामला गोपनीय है करके बच जाना चाहते हैं एड्स पीडि़त हितग्राहियों के मसले पर नाम उजागर न करने का कानूनी कवच काम आया और यही कुछ उज्वला होम में हो रहा है।