काठमांडू। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के खिलाफ एक मामले में न्याय मित्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सदस्यों ने उच्चतम न्यायालय के सामने दलील दी कि प्रतिनिधि सभा को भंग करने का उनका कदम असंवैधानिक था। नेपाल में पिछले साल 20 दिसंबर को ओली ने चौंकाने वाला कदम उठाते हुए प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया, जिसकी वजह से देश में राजनीतिक संकट आ गया। ओली ने यह कदम ऐसे समय में उठाया जब उनके प्रतिद्वंद्वी पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ और उनके बीच सत्ता की खींचातानी चल रही है। प्रंचंड के नेतृत्व में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े तबके ने 275 सदस्यों के सदन को भंग करने के कदम का विरोध किया।
एक खबर के मुताबिक इस मामले की सुनवाई 23 दिसंबर से ही उच्चतम न्यायालय में जारी है। इस मामले की सुनवाई न्याय मित्र के अंतिम सदस्य की जिरह के बाद पूरी होनी थी। न्यायमित्र के पांच सदस्यों में से एक वरिष्ठ वकील पूर्णमान शाक्य ने कहा कि नेपाल का संविधान देश के कार्यकारी प्रमुख को सदन को भंग करने के अधिकार से वंचित रखता है। यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, बल्कि संवैधानिक मुद्दा है। अदालत को इसे उसी अनुसार देखना चाहिए। प्रचंड और ओली समूह दोनों ही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी पर नियंत्रण का दावा करती है और यह मामला निर्वाचन आयोग के पास है।