वाशिंगटन। अमेरिका और चीन के बीच जद्दोजहद जारी है। कई लोगों का मानना है कि जो वर्चस्व की लड़ाई एक समय में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चल रही थी, चीन उसमें सोवियत संघ की जगह लेने की कोशिश कर रहा है। चीन अमेरिका को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है। दोनों के बीच ट्रेड वॉर आज भी जारी है। दोनों देशों की गतिविधियों को देख कर लग रहा है कि यह संघर्ष अंतरिक्ष के स्तर पर भी पहुंच गया है। करीब 15 साल पहले चीन ने उपग्रहरोधी शस्त्र बनाने पर काम शुरू किया था। अब यह अमेरिकी की उस सैन्य तकनीकी की चुनौती देने में सक्षम हो गया है जो अंतरिक्ष मामलों में दूसरे देशों से उसे आगे रखती थी। अब चीन सैन्य अड्डों पर मौजूद आधुनिक हथियार सैटेलाइट को मार गिराने में सक्षम हैं और लेसर बीम से संवेदनशील सेंसर नाकाम करने की भी काबलियत रखते हैं।
इतना ही नहीं यह भी माना जा रहा है कि चीन के साइबर हमले पैंटागॉन का सैटेलाइड बेड़ों से सपर्क काटने में सक्षम हो सकते हैं। ये सैटेलाइट दुश्मन की गतिविधियों पर निगरानी रखने का काम करते हैं और उसके हथियारों पर सटीक निशाना लगाने संबंधी जानकारी मुहैया कराते हैं। अमेरिका में नए राष्ट्रपति जो बाइडन के सामने एक प्रमुख सुरक्षा मुद्दा यही होगा कि अमेरिका चीन की ओर से अतरिक्ष में मिलने वाली सैन्य चुनौती से निपटने में कैसे सक्षम होगा। बाइडन प्रशासन को ट्रम्प प्रशासन से विरासत में मिले बहुत से कामों पर अपनी योजनाएं बनानी हैं। इसमें स्पेस फोर्स, जो अमेरिका नई सैन्य शाखा है, उस पर भी फैसला होना है जिसकी बहुत आलोचना हुई थी और आशंका व्यक्त भी की गई थी कि उससे हथियारों की खतरनाक होड़ हो सकती है। आशंका जताई जा रही है कि अमेरिकी अंतरिक्ष तंत्र की कमजोरी का अहसास बढ़ सकता है। बाइडन के होने वाले सेक्रेटरी ऑफ डिफेंस लॉयड जे ऑस्टिन ने सीनेट को बताया था कि उनकी प्राथमिकता देश को चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति से आगे बनाए रखने की होगी। उन्होंने इसके लिए अंतरिक्ष मामलों को भी अहमियत देने की बात की। नए प्रशासन ने अंतरिक्ष में नई प्रयासों को मजूबती देने में भी दिलचस्पी दिखाई है। इसमें निजी क्षेत्र को सहयोग देने की बात भी शामिल है। यही नीति ओबामा और ट्रम्प प्रशासन में भी चली थी। बाइडन प्रशासन में यह अमेरिकी नीति बदलेगी, इसकी संभावना कम ही है। जिसतरह से अमेरिका ने अफगानिस्तान और ईराक के खिलाफ युद्ध में अंतरिक्ष क्षमता का प्रयोग किया उसी से चीन ने पहले खतरा महसूस किया और साल 2005 में पहले उपग्रहरोधी परीक्षणों की शुरुआत की। उसके बाद साल 2007 में चीन ने एक खराब पड़े मौसमी उपग्रह को नष्ट किया। ऐसा शीत युद्ध के बाद पहली बार हुआ था। इसके अलावा वह लेजर बीम के प्रयोग भी कर चुका है।