लंदन। म्यामां में सेना के जनरलों ने जब पिछले हफ्ते तख्तापलट किया, तो उन्होंने विरोध प्रदर्शनों को परोक्ष तौर पर रोकने के प्रयास के तहत इंटरनेट तक पहुंच पर रोक लगा दी। युगांडा के निवासी हाल के चुनाव के बाद हफ्तों तक फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया मंचों का उपयोग नहीं कर सके। वहीं इथियोपिया के उत्तरी तिगरे क्षेत्र में व्यापक संघर्ष के बीच महीनों से इंटरनेट बंद है। दुनिया भर में, इंटरनेट को बंद करना दमनकारी और निरंकुश शासनों और कुछ अनुदार लोकतंत्रों की एक लोकप्रिय रणनीति बन गई है। डिजिटल अधिकार समूहों का कहना है कि सरकारें इसका उपयोग असहमति की आवाज, विरोधियों की आवाज को चुप कराने या मानवाधिकारों के हनन को छुपाने के लिए करती हैं तथा इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होने की चिंता उत्पन्न होती है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अक्सर विरोध या नागरिक अशांति के जवाब में ऑनलाइन पहुंच रोक दी जाती है, विशेष तौर चुनावों के दौरान क्योंकि वे सूचना के प्रवाह को रोककर सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रखने की कोशिश करते हैं। यह स्थानीय टीवी और रेडियो स्टेशन पर नियंत्रण करने का डिजिटल समकक्ष है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट से पहले के समय के दौरान विद्रोहियों के खिलाफ किया जाता था। इंटरनेट निगरानी संगठन ‘नेटब्लॉक्स’ के संस्थापक एल्प टोकर ने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट बंद किये जाने की जानकारी काफी कम सामने आती है। उनके जैसे प्रयासों से दस्तावेजीकरण के प्रयासों से विश्व को पता चल पा रहा है कि क्या हो रहा है। ब्रिटेन आधारित डिजिटल निजता एवं सुरक्षा अनुसंधान समूह की एक रिपोर्ट के अनुसार, गत वर्ष 21 देशों में 93 प्रमुख इंटरनेट शटडाउन हुए। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट पर रोक लगाये जाने के राजनीतिक, आर्थिक और मानवीय परिणाम होते हैं। प्रभाव कोविड-19 लॉकडाउन के चलते और बढ़ गए हैं जिसके चलते स्कूल की कक्षाएं आनलाइन चलने जैसी गतिविधियां हो रही हैं। म्यामां में, सेना द्वारा सत्ता पर नियंत्रण हासिल करने और नेता आंग सान सू की और उनके सहयोगियों की हिरासत के खिलाफ के परोक्ष तौर पर प्रदर्शनों पर रोकने के लिए पिछले सप्ताह इंटरनेट पहुंच पर 24 घंटे के लिए रोक लगा दी गई थी। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने बताया कि रविवार दोपहर तक उनके मोबाइल फोन पर डेटा सेवा अचानक बहाल हो गई।