यंगून । म्यांमार में सैन्य तख्तापलट कार्रवाई होने के बाद से ही सेना के अमानवीय कृत्यों के चलते हालात बेकाबू हो गए हैं। रविवार को यंगून इलाके में प्रदर्शनकारियों ने एक चीनी फैक्ट्री में आग लगा दी गई, जिसके बाद म्यांमार की सेना ने खुलेआम गोलियां बरसाईं। इस गोलीकांड में अब तक 70 प्रदर्शनकारियों की मौत की खबर है। बीते 6 हफ्ते से जारी प्रदर्शन का ये अब तक का सबसे खतरनाक एक्शन रहा। यंगून की गोलीबारी में 51 लोगों की जान गई, तो उससे अलग-अलग शहरों में भी 19 लोग रविवार को ही अपनी जान गंवा बैठे।
म्यांमार के एक संगठन के मुताबिक, अभी तक के प्रदर्शन में मारे गए लोगों की संख्या 125 का आंकड़ा पार कर चुकी है। म्यांमार में 1 फरवरी को सेना ने तख्तापलट कर दिया था। सेना के स्वामित्व वाले मयावाडी टीवी ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया, जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। प्रस्तोता ने कहा कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को 'संभावित तख्तापलट की व्यवस्था करार दिया था।
इस बीच आंग सान सू की की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के वरिष्ठ नेता शनिवार को फेसबुक के माध्यम से जनता से रूबरू हुए। उन्होंने वर्तमान समय को सबसे काला समय बताते हुए कहा कि यह इस बात का संकेत है कि सुबह जल्द आने वाली है। उन्होंने तख्तापलट के खिलाफ चल रहे आंदोलन को समर्थन देते रहने की बात एक बार फिर दोहराई। उधर, सेंट्रल म्यांमार में स्थित मोन्वा टाउनशिप ने अपनी स्थानीय सरकार और पुलिस बल के गठन का ऐलान किया है। बता दें कि एक फरवरी को हुए तख्तापलट के बाद से अब तक 80 प्रदर्शनकारी जहां मारे जा चुके हैं वहीं, 2100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।