चीन नहीं भारत था प्राचीन रोमन साम्राज्य का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर, भारतीय व्यापार से होती थी रोम की एक तिहाई कमाई, खुलासा

Updated on 20-10-2024 01:14 PM
काहिरा: साल 2022 में पुरातत्वविदों की एक टीम लाल सागर के तट पर स्थित बेरेनिके में मिस्र की प्राचीन देवी आइसिस के एक नए खोजे गए मंदिर की खुदाई कर रही थी। इस दौरान उन्हें हैरान करने वाली चीजें मिलीं। आइसिस मंदिर के भंडार कक्ष की खोज के दौरान जो खास चीजें मिलीं, उनमें बुद्ध का सिर और धड़ भी शामिल था। अफगानिस्तान के पश्चिम में पाये जाने वाले यह पहले बुद्ध थे। बेरेनिके में बुद्ध की मूर्ति का मिलना अपने आप में खास था, क्योंकि रोमन साम्राज्य की यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए ये जगह एक लैंडिंग पॉइंट थी।

रोम और भारत में व्यापार


आइसिस मंदिर के भंडारों में एक पत्थर का स्मारक भी मिला है, जो आरंभिक हिंदू देवताओं की त्रिमूर्ति को समर्पित है। इन पुरातात्विक खोजों से भारतीय उपमहाद्वीप और दुनिया के बीच संबंधों के बारे में मान्यताओं को लेकर क्रांतिकारी संशोधन हो रहा है। उदाहरण के लिए एक अनुमान है कि रोमन साम्राज्य के पूरे राजस्व का एक तिहाई हिस्सा प्राचीन भारत के साथ होने वाले व्यापार से हासिल कर से मिलता था।

नई खोजों और पुरातात्विक साक्ष्यों से जो पता चलता है उसने पुरानी मान्यताओं के बारे में इतिहासकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। ये आश्चर्यजनक आंकड़े पपीरस के दस्तावेज से पाए गए हैं, जो प्राचीन मिस्र के कूड़े के ढेर में पाए गए थे। इन दस्तावेजों को वियना में रखा गया है। इसमें एक ऐसा दस्तावेज है, जिसमें एक माल के बारे में जानकारी दी गई है, जिसे भारत से बेरेनिके भेजा गया था।

आसमान छू रही थी भारतीय सामान की कीमत


इस माल को हर्मापोलन जहाज से लाल सागर के तट के लिए रवाना किया था, लेकिन जिस चीज ने इतिहासकारों को सबसे ज्यादा आकर्षित किया, वह इस सामान की कीमत थी। निर्यात में लगभग चार टन हाथीदांत शामिल था,जिसकी कीमत 70 लाख सेस्टर्स थी। यह कितनी बड़ी रकम थी, इस बात से समझा जा सकता है कि उस समय रोमन सेना में एक सैनिक साल भर में 800 सेस्टर्स कमाता था। रोमन अभिजात वर्ग के सदस्य को सीनेटर पद के लिए खड़े होने के लिए 10 लाख सेस्टर्स की संपत्ति दिखानी पड़ती थी।

चीन नहीं, भारत का था जलवा


चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सिकंदर के आक्रमण के बाद से ही भारत के अविश्वसनीय वैभव और संपदा की पहली रिपोर्ट यूरोप पहुंचनी शुरू हो गई थी। तब से ही यूरोपीय लोग भारत के बारे में कल्पना करते रहे हैं। हेरोडोटस और यूनानी भूगोलविदों ने भारत की अमीरी का वर्णन किया है, जहां कीमती रत्न धूल की तरह जमीन पर बिखरे हुए रहते थे। यह भी कहा जाता है कि यह चीन नहीं, बल्कि भारत था., जो रोमन साम्राज्य का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।
यह भी पता चलता है कि जब पहली शताब्दी ईसा पूर्व में लाल सागर के बंदरगाहों के माध्यम से दोनों दुनिया नियमित और सीधे संपर्क में आईं तो रोमन लोग भारतीय वस्तुओ और विलासिता की वस्तुओं के उपभोक्ता बन गए। इसमें दक्षिणी भारत से आने वाले मसाले खास थे। भारतीय व्यापारी इन वस्तुओं के व्यापार से काफी लाभ कमा रहे थे।
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