चाबहार पोर्ट पर लगाने के लिए भारत ने क्रेन और कुछ अन्य उपकरण ईरान भेजे, चीन-पाक की उड़ी नींद

Updated on 24-03-2021 09:42 PM

तेहरान चीन और पाकिस्तान की चाल को नाकाम करने के लिए भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का काम तेज कर दिया है। ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण धीमी गति से चल रहे इस प्रोजक्ट के स्पीड पकड़ने से पाकिस्तान और चीन दोनों की चिंता बढ़ गई है। भारत ने बंदरगाह पर स्थापित की जाने वाली क्रेन सहित कुछ दूसरे उपकरणों की दूसरी खेप ईरान भेजी है।

भारत इससे पहले जनवरी में दो मोबाइल हार्बर क्रेन को यहां पहले ही लगा चुका है। बाकी बची दो क्रेनों की आपूर्ति इस साल जून तक कर दी जाएगी। पोर्ट पर खड़े जहाजों पर सामान लादने और उतारने के लिए मोबाइल हॉर्बर क्रेन का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी मदद से बड़े-बड़े कंटेनरों को बहुत ही कम समय में किसी विशालकाय ट्रांसपोर्ट शिप के ऊपर लादा या उतारा जा सकता है। इस क्रेन की मदद से पोर्ट पर पहुंचे सामन को ट्रेन या ट्रक के जरिए जमीनी रास्तों से दूसरी जगह भेजा जा सकता है। भारत ने 23 मई, 2016 को ईरान के साथ 8.5 करोड़ डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

इस डील के पहले चरण में बंदरगाह पर उपकरण लगाने मशीनीकरण और परिचालन शुरू करने का समझौता किया गया था। दूसरे चरण में यहां से माल की सप्लाई का काम शुरू किया जाएगा। भारत ने इसके लिए बाकायदा पोत परिवहन मंत्रालय के अंतर्गत एक अलग कंपनी बनाई थी, जिसे इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड का नाम दिया गया है।

चाबहार पोर्ट के कारण भारत अपना माल अफगानिस्तान और ईरान को सीधे भेज पा रहा है।

भारत रूस, तजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजकिस्तान और उजेबकिस्तान के साथ भी अपने व्यापारिक संबंध बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। मध्य एशिया के अधिकतर देश चारों तरफ जमीन से घिरे हुए हैं। इसलिए भारत चाबहार के जरिए इन देशों में कम लागत में अपने माल को पहुंचा सकता है। इस पोर्ट के कारण रूस से हथियारों की खरीद के कारण भारत को जो व्यापार घाटा होता है, उसकी भी भरपाई हो सकती है। चीन और पाक द्वारा संयुक्त रूप से विकसित हो रहे ग्वादर बंदरगाह के काट के रूप में भी ईरान के चाबहार को देखा जा रहा है। यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है कि अमेरिका ने इस बंदरगाह को ईरान पर लगे प्रतिबंधों से मुक्त कर रखा है। भारत ने अफगानिस्तान से ईरान के चाबहार तक सड़क मार्ग का निर्माण भी कराया है। जिससे अफगानिस्तान को समुद्र तक आसानी से पहुंच मिला है।

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