तेहरान । चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, ब्रिटेन और ईरान के बीच शुक्रवार को एक अहम बैठक होने वाली है। यह बैठक ओबामा प्रशासन के दौरान ईरान और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते ज्वाइंट कंप्रहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जकोपा) को लेकर आयोजित की जा रही है। सन 2015 में हुए इस समझौते पर इन दोनों के साथ पांच अन्य देशों और यूरोपीयन यूनियन ने भी हस्ताक्षर किए थे।
सन 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इससे अमेरिका को कोई फायदा नहीं होगा। इसके साथ ही उन्होंने इस समझौते को तोड़ दिया था और एक नया समझौता करने की बात कही थी। सन 2019 में ईरान ने भी इस समझौते से खुद को अलग करने का ऐलान कर दिया था। जो बाइडन ने सत्ता में आने से पहले ही इस बात की घोषणा कर दी थी कि वो इस समझौते को दोबारा से लागू करने के लिए काम करेंगे। यह बैठक इसी तरफ एक कदम है।
इस बैठक में समझौते पर वापस लौटने के सभी विकल्पों को तलाशा जाएगा और इसके लिए पूरे प्रयास किए जाएंगे। इस बाबत दिए गए एक आधिकारिक बयान में बताया गया है कि वर्चुअल रूप से होने वाली इस बैठक में इस बारे में भी विचार किया जाना है कि इस समझौते को कैसे दोनों तरफ से पूरी तरह से लागू किया जाए।
बैठक का नेतृत्व यूरोपियन एक्सटर्नल एक्शन सर्विस के उप-महासचिव और पॉलिटिकल डायरेक्टर एनरिक मोरा करेंगे जो यूरोपीयन यूनियन के हाई रिप्रजेंटेटिव जोसेफ बोरेल का प्रतिनिधित्व करेंगे। तेहरान की तरफ से कहा गया है कि यदि उसके ऊपर से प्रतिबंध हटाए जाते हैं, तो वह अपने परमाणु कार्यक्रम को रोकने पर विचार कर सकता है। अलजजीरा के मुताबिक सन 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के ऊपर प्रतिबंधों को बढ़ा दिया था। समझौते से बाहर होने के बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को न सिर्फ दोबारा शुरू किया था बल्कि यूरेनियम संवर्धन को भी बढ़ा दिया था।
हालांकि ईरान के इस फैसले ने समझौते के अन्य सदस्यों को चिंतित भी किया था और नाराज भी किया था। समझौते को लेकर बाइडन प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि यदि ईरान पूरी तरह से इस समझौते पर वापस आता है तो अमेरिका भी अपने कहे वादों को पूरा करेगा। लेकिन ईरान चाहता है कि उसके ऊपर लगे प्रतिबंधों को पूरी तरह से हटाया जाए।