लंदन । एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि पिछली कुछ अलगाव करने वाली घटनाओं के बावजूद चिम्पांजियों की उपजातियों में जेनेटिक संबंध है। चिम्पांजी और मानवों के पूर्वज एक ही रहे हैं। वे सबसे निकट के जानवरों में से एक है। उनका अध्ययन जीवों के विकास के अध्ययन से भी अहम माना जाता है। यह इस तरह का पहला अध्ययन है जब इतने व्यापक तौर पर चिम्पांजियों पर ऐसा शोध हुआ है। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है।
चिम्पांजी को चार उपजातियों में बांटा गया है जो भौगोलिक बाधाओं जैसे की नदी से अलग अलग बंटे हैं और उनका आपस में कोई संपर्क नहीं हो पाता है। इससे पहले चिम्पांजी की जनसंख्याओं को समझने का प्रयास करने वाले अध्ययन या तो किसी स्थान विशेष के वितरण तक सीमित थे, और किसी अज्ञात उत्पत्ति, या फिर अलग अलग जेनेटिक मार्कर वाले थे। इन बाधाओं के कारण कुछ अध्ययनों ने चिम्पांजियों की उपजातियों में स्पष्ट अंतर दिखाया है तो कुछ इंसानों की तरह ही अनुवांशिकी उतार चढ़ाव का सुझाव देते दिखे हैं। एमपीआई-ईवीए के पैन अफ्रीकन प्रोग्राम: द कल्चर्ड चिम्पांजी कार्यक्रम के तहत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने पिछले 8 सालों में 18 देशों की 55 जगहों पर से विभिन्न चिम्पांजियों के मल के नमूने जमा किया। यह इस जाति के अब तक सबसे विस्तृत और व्यापक नमूने जमा किए गए हैं।
पिछले अध्ययनों की सीमितताओं को देखते हुए चिम्पांजियों पर हुए इन शोध के हर नमूने की उत्पत्ति के स्थान की जानकारी शामिल थी। इस अध्ययन की वरिष्ठ लेखिका और पैनएफकी को डायरेक्टर मिमि अरेंजलविक ने बताया कि इन नमूनों को जमा करना एक बहुत ही मुश्किल काम था। चिम्पांजी मानवीय उपस्थिति के आदी नहीं थे। इसलिए उनकी टीम को इसके लिए बहुत ही धैर्य, कुशलता और भाग्य से काम लेना पड़ा। इस अध्ययन के प्रथम लेखक जैक लेस्टर ने बताया कि उनकी टीम ने तेजी से उभरने वाले जेनिटक मार्कर का उपयोग किया जो चिम्पांजियों की प्रजाति के इतिहास में हाल की जनसंख्या को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने इनकी बहुत सारे विविधतापूर्ण नमूने लिए और दर्शाया कि चिम्पांजी की उपजातियां कैसे आपस में जुड़ी हुई हैं। या फिर वे अफ्रीकी जंगलों के हालिया अधिकाधिक विस्तार के दौरान कैसे दोबारा जुड़ी होगीं। हालांकि चिम्पांजी अपने उपजातियों में सुदूर इतिहास में अलग अलग हुए होंगे और यह मानवीय दखलंदाजी शुरू होने से बहुत पहले हुआ होगा, भौगोलिक बाधाओं से संबंधि प्रस्तावित उपजातियां चिम्पांजियों को बिखराव की शुरुआत थी।
शोधकर्ताओं का कहना है कि चिम्पांजियों को लेकर उनके माइंक्रोसैटेलाइट डीएनए मार्कर से आए नतीजे बताते हैं कि हाल की शताब्दी में अनुवांशिक संबंध के जिम्मेदार प्रमुख तौर से भौगोलिक दूरियां और स्थानीय कारक हैं जो पुराने उपजातीय विभाजन को ढक रहे हैं। इन नतीजों से चिम्पांजियों में बहुत बड़ी बर्ताव विविधता पाई गई है जो इंसानों की तरह पर्यावरण में बदलाव के प्रतिक्रिया की वजह से है। शोधकर्ताओ ने चिम्पांजियों के उपस्थिति पर मानवीय प्रभाव को होना भी पाया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आमतौर से माना जाता है कि ग्लेशियर काल में चिम्पांजी जंगल में शरण लेते होंगे जिसकी वजह से ये अलग अलग हो जाते होंगे जो अब उपजाति के तौर पर पहचाने जाते हैं।