बर्लिन । एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर दुनियाभर की 40 फीसदी आबादी पर हो सकता है। चिंताजनक बात यह है कि ये बदलाव कम तापमान पर भी देखे जा सकते हैं जबकि पहले के आकलन में तापमान ज्यादा होने पर खतरा पैदा होने की आशंका थी। वैज्ञानिकों ने क्लाइमेट मॉडल के 30 लाख कंप्यूटर सिम्यूलेशन तैयार किए, इनमें से करीब एक तिहाई में डॉमिनो इफेक्ट देखे गए जब तापमान में बढ़त औद्योगिक स्तर की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से कम थी। पेरिस समझौते में इतनी बढ़त को अधिकतम माना गया है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन इस हद तक जाने से हालात का फिर सुधरना मुमकिन नहीं होगा। इसकी वजह से धरती पर जीवन का आधार बने सिस्टम बिगड़ सकते हैं। कंप्यूटर पर धरती की जलवायु का सिम्यूलेशन बनाने के लिए रिसर्चर्स ने मॉडल तैयार किए थे जिन पर क्लाइमेट सिस्टम के डॉमिनो का असर देखा गया था। इनमें से कुछ बर्फ की परतें, महासागरों के करंट और एल नीनो जैसे मौसम के पैटर्न हैं। नई स्टडी में पाया गया कि ढहतीं बर्फ की परतों से चेन रिएक्शन में बदलाव पैदा हो सकते हैं। एक के नतीजे में पाया गया ग्लेशियर पिघलने से अटलांटिक करंट धीमा हो गया जिससे एल-नीनो पर असर पड़ा और ऐमजॉन वर्षावनों में बारिश कम हो गई और वर्षावन सवाना में तब्दील हो गए।
दूसरे सिम्यूलेशन में पाया गया कि ग्रीनलैंड की बर्फ की शीट के पिघलने से महासागर में ताजा पानी मिल गया जिससे अटलांटिक महासागर का करंट धीमा हो गया और उत्तरी ध्रुव से गर्मी पहुंचने लगी। इससे दक्षिणी महासागर का तापमान बढ़ने लगा और अंटार्कटिक बर्फ की शीटें अस्थिर होने लगीं जिससे पानी महासागरों में मिलने लगा और समुद्र का स्तर बढ़ गया। ज्यादातर में जलवायु परिवर्तन का असर तटीय इलाकों में देखा गया जहां 2.4 अरब या दुनिया की करीब 40प्रतिशत आबादी रहती है। स्टडी के सह-लेखक जोनाथन डॉन्जेस का कहना है कि अगर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम नहीं हुआ तो सदी के आखिर तक तापमान में बढ़त 3 डिग्री सेल्सियस भी पार कर सकती है।