मेलबर्न । सोशल मीडिया पर घ्रणा फैलाने वाली (हेट स्पीच) की सामग्री को लेकर दुनिया भर में बवाल मचा है। दरअसल, अंग्रेजी से इतर भाषाओं पर फेसबुक के ध्यान न देने से ऐसे हालात हुए है। अगर कई ऑस्ट्रेलियाई मुस्लिमों की तरह आपको भी लगता है कि आपने नफरत फैलाने वाली सामग्रियों (हेट स्पीच) की जानकारी फेसबुक को दी और आपको ऐसी स्वचालित प्रतिक्रिया मिली है जिसमें कहा गया हो कि यह प्लेटफॉर्म के सामुदायिक मानदंडों का उल्लंघन नहीं करता है, तो आप अकेले नहीं हैं। हम और हमारी टीम पहले ऑस्ट्रेलियाई समाज वैज्ञानिक हैं जिन्हें फेसबुक की विषय-सामग्री नीति शोध पुरस्कारों के माध्यम से आर्थिक मदद मिली है जिसका इस्तेमाल हमने पांच एशियाई देशों- भारत, म्यांमार, इंडोनेशिया, फिलिपीन और ऑस्ट्रेलिया में एलजीबीटीक्यूआई प्लस समुदाय पेजों पर घृणा फैलाने वाली सामग्रियों की जांच में किया।
हमने 18 महीनों तक एशिया प्रशांत क्षेत्र में घृणा फैलाने वाली सामग्रियों के नियमन के तीन पहलुओं पर गौर किया। सबसे पहले, हमने अध्ययन वाले देशों में नफरत फैलाने वाली सामग्रियों से संबंधित कानूनों को देखा ताकि यह समझा जा सके कि इस समस्या से कानूनी रूप से कैसे निपटा जा सकता है। हमने यह भी देखा कि 'घृणा फैलाने वाली सामग्रियां यानी हेट स्पीच' की फेसबुक की परिभाषा में क्या इस परेशान करने वाले व्यवहार के सभी स्वीकृत रूप एवं संदर्भ शामिल हैं। इसके अलावा, हमने फेसबुक की विषय सामग्री नियमन टीम पर भी गौर किया, उसके कर्मचारियों से बात की कि कैसे कंपनी की नीतियां एवं प्रक्रियाएं घृणा के उभरते स्वरूपों की पहचान के लिए काम करती हैं। भले ही फेसबुक ने हमारे अध्ययन के लिए पैसा दिया हो, लेकिन इसने कहा कि निजता कारणों से वह हमे उसके द्वारा हटाई गई घृणा फैलाने वाली सामग्रियों का आंकड़ा संचय नहीं उपलब्ध करा सकता। इसलिए हम यह नहीं जांच पाए कि कंपनी में कार्यरत उसके नियंत्रक कितने प्रभावी ढंग से घृणा को वर्गीकृत करते हैं। इसके बजाय, हमने प्रत्येक देश में शीर्ष तीन एलजीबीटीक्यूआई प्लस सार्वजनिक फेसबुक पेजों पर पोस्टों एवं टिप्पणियों को लिया, उन घृणा फैलाने वाली सामग्रियों को देखने के लिए जिन्हें या तो प्लेटफॉर्म की मशीनी बुद्धिमता नहीं पकड़ पाई या फिर मानव नियंत्रक।
हमने इन पेजों को चलाने वाले लोगों से नफरत को नियंत्रित करने के उनके अनुभव के बारे में और यह जानने के लिए साक्षात्कार लिया कि उनके विचार में फेसबुक दुर्व्यवहारों को कम करने में क्या कर सकता है। उन्होंने बताया कि फेसबुक अक्सर घृणा सामग्रियों संबंधी उनकी रिपोर्ट को खारिज कर देता तब भी पोस्ट साफ-साफ उसके सामुदायिक मानदंडों का उल्लंघन कर रही होती है। कुछ मामलों में जिन संदेशों को मूल रूप से हटा दिया जाता है उन्हें अपील पर फिर से पोस्ट कर दिया जाता है। ज्यादातर पेज एडमिनिस्ट्रेटर का कहना था कि तथाकथित 'फ्लैगिंग-शिकायत करना' प्रक्रिया मुश्किल से ही काम करती है और वे इसे शक्तिहीन समझते हैं। वे चाहते हैं कि फेसबुक उनसे ज्यादा से ज्यादा विचार-विमर्श कर दुर्व्यवहारों के प्रकार को समझे और यह जाने कि वे अपने सांस्कृतिक संदर्भों में घृणा फैलाने वाली सामग्रियां क्यों मानी जाती हैं। फेसबुक को लंबे समय से एशिया में उसके मंच पर घृणा फैलाने वाली सामग्रियों के स्तर एवं संभवानाओं के साथ समस्या रही है।