पेइचिंग । पर्यावरण प्रदूषण से हो रहे जलवायु परिवर्तन का असर अब पृथ्वी पर स्पष्टतौर से दिखाई देने लगा है। एक ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि हर साल धरती पर से 53 हजार वर्ग किमी बर्फ पिघल रही है। इससे आने वाले समय में इंसानों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 1979 से लेकर वर्ष 2016 के बीच इतनी बर्फ पिघली है कि उससे विशाल सुप्रीयर झील को भरा जा सकता है। धरती पर बर्फ से भरे इलाके पृथ्वी पर मौजूद कुल ताजा पानी का तीन चौथाई है। धरती पर बर्फ के इलाके अगर कम होते हैं तो यह पृथ्वी पर बढ़ते तापमान का संकेत है। चीन के लानझोउ विश्वविद्यालय के भूगोलवेत्ता शिआओकिंग पेंग ने कहा, 'धरती के बर्फीले इलाके जलवायु के सबसे संवेदनशील संकेतक होते हैं और साथ ही यह बताते हैं कि दुनिया बदल रही है।'
पेंग ने कहा, 'धरती पर बर्फीले इलाके के आकार में बदलाव एक बड़े वैश्विक परिवर्तन को दर्शाता है, न कि किसी क्षेत्रीय या स्थानीय बदलाव को।' इससे पहले जनवरी के शुरू में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा था कि वर्ष 2020 सबसे गरम साल रहा। इसका मतलब है कि बर्फ के पिघलने की गति और तेज हो गई होगी। वैश्विक औसत तापमान भी वर्ष 1951 से 1980 के बीच एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। इस शोध से पहले अब तक दुनियाभर में बर्फीले इलाके में आए व्यापक बदलाव का अध्ययन नहीं किया गया था। शोधकर्ताओं ने सैटलाइट से मिले आंकड़े के आधार पर इसकी माप की है। यही नहीं दुनियाभर में बर्फ की गहराई को भी मापा गया है। उन्होंने पाया कि ज्यादातर बर्फ उत्तरी गोलार्द्ध में हुआ है। हर साल लगभग 63 हजार वर्ग किमी बर्फ पिघली है। वहीं दक्षिणी गोलार्द्ध में बर्फीले क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है। इससे पहले जून में एक अन्य शोध में कहा गया था कि तेजी से पिघलती बर्फ के कारण दुनिया की 40 फीसदी जनसंख्या प्रभावित हो सकती है।