वाशिंगटन । अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के जूनो अंतरिक्ष यान ने पता लगाया है कि मंगल ग्रह से तेजी से चलने वाले धूल के बादलों की हमारे सौरमंडल के पूरे आंतरिक हिस्सों में बारिश हो रही है जिसमें पृथ्वी भी शामिल है। नासा के वैज्ञानिकों का सबसे पहले इस पर तब ध्यान गया जब उन्होंने जूनो के पास कणों की धारा को देखा। पहले उन्होंने इसे जूनों के ईंधन का रिसाव समझा जो जूनो को तारों का अवलोकन करने वाले कैमरों को धुंधला करता लगा। बाद में पता चला कि यह जूनो से टकरा कर छाने वाली धूल है मंगल ग्रह के कारण आ रही है।
यह खोज नासा और दूसरी स्पेस एजेंसी को सौरमंडल में आपने यान की सुरक्षा के लिए मददगार हो सकती है। वैज्ञानिक पहले से ही जानते थे कि धूल के बादल सूर्य का चक्कर लगाते हैं, लेकिन वे यह मान कर चल रहे थे कि ये बादल सुदूर क्षुद्रग्रह या धूमकेतु से निकलते हैं और धीरे धीरे सौरमंडल के आंतरिक हिस्से में चले आते हैं। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जूनो के कैमरा का उपयोग किया और धूल के बादलों के वितरण और प्रक्षेपपथ का अवलोकन कर पाया कि इसके पीछे मंगल ग्रह जिम्मेदार है। उन्होंने पाया कि यह इतनी ज्यादा धूल है कि यह पृथ्वी के वायुमंडल तक में पहुंच रही है। राहत की बात यह है कि जूनो और उसके सौर पैनल ठीक हैं जबकि बहुत ही तेजी से आती धूल ने उसने नुकसान पहुंचाने की बहुत कोशिश की। जूनो का अनुभव नासा को भविष्य के लिए सुरक्षित अंतरिक्ष यान बनाने में सहायक हो सकता है।
अब नासा बेहतर समझ रहा है कि खगोलीय धूल से कैसे निपटा जा सकता है।यह जानने के बाद कि यह धूल कहां से और कैसे आ रही है, अंतरिक्ष यान की सुरक्षा काफी ना हो, छोटे महीन कण अंतरिक्ष यानों को गंभीर क्षति पहुंचा सकते हैं। लेकिन इतना तो तय है कि स्पेस एंजेसी अब इस शोध के मद्देनजर ही अपने अगले अभियान मंगल या उसके आगे भेजेंगी। वैज्ञानिकों ने पाया है कि ज्यादातर धूल पृथ्वी और क्षुद्र्ग्रह की पट्टी के बीच से आई है जिस पर गुरू ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का असर है। अब तक वैज्ञानिक इस धूल के वितरण को नहीं समझ पा रहे थे। वे इसे केवलतारों के बीच के हिस्से की धूल समझ रहे थे। जूनो के वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि यह धूल के बादल पृथ्वी तक आकर ही रुक जाते हैं। क्योंकि उनके पास आते ही पृथ्वी का गुरुत्व उन्हें खींच लेता है।