वाशिंगटन । चीन का महात्वाकांक्षाए उस पर भारी पड़ रही है। दरअसल, 1949 दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरा विश्व तीन भागों में विभाजित हो गया था। विश्व में केवल सोवियत संघ और अमेरिका जैसी ताकत का वर्चस्व कायम था। भारत जैसे कुछ देश थे जो किसी भी गुट का हिस्सा नहीं थे और भारत की अगुवाई में तीसरी बना था गुटनिरपेक्ष। 1949 दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूरा विश्व तीन भागों में विभाजित हो गया था। विश्व में केवल सोवियत संघ और अमेरिका जैसी ताकत का वर्चस्व कायम था। भारत जैसे कुछ देश थे जो किसी भी गुट का हिस्सा नहीं थे और भारत की अगुवाई में तीसरी बना था गुटनिरपेक्ष। दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शुरू हुआ था शीत युद्ध। इस युद्ध में हथियारों से जंग तो नहीं हुई लेकिन ऐसा कह सकते हैं कि परिस्थिति ऐसी थी कि कभी भी युद्ध हो सकता हैं। हथियारों की होड़ मची रहती थी। हर देश अपने आपको हथियारों से मजबूत कर रहा था। इस दौरान चीन की चांदी ही चांदी थी। चीन ने विश्वभर के देशों को खूब हथियार बेचे। 1991 में शीत युद्ध सोवियत संध के खंडन के बाद समाप्त हुआ और अमेरिका विश्व में सबसे बड़ी ताकत बन गया। अब अमेरिका हथियारों का आयात और निर्यात दोनों करने में सबसे ऊंचाई पर था। अमेरिका की दुनियाभर के देशों में हथियार निर्यात में लगभग 37 फीसदी भागीदारी है।
विश्व की महाताकत बनने के बाद अमेरिका का विश्व बाजार पर कब्जा रहा। अमेरिका को टक्कर देने के लिए धीरे-धीरे चीन ने अपनी नीतियों में बदलाव किया और अमेरिका को विश्व बाजार में कांटे की टक्कर देने लगा। पिछले कुछ सालों में अमेरिका को कई चीजों में चीन ने पछाड़ा है। ट्रंप के शासन काल में अमेरिका और चीन के बीच तीसरे विश्व युद्ध जैसे हालात बने रहे। हर संबोधन में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन की कड़ी आलोचना की है।
चीन-संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार युद्ध चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे आर्थिक संघर्ष है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जनवरी 2018 में चीन पर टैरिफ और अन्य व्यापार बाधाओं को स्थापित करना शुरू कर दिया, जिसका लक्ष्य अमेरिका को "अनुचित व्यापार प्रथाओं" और बौद्धिक संपदा की चोरी में परिवर्तन करने के लिए मजबूर करना था। ट्रम्प प्रशासन ने कहा था कि ये प्रथाएं यूएस, चीन व्यापार घाटे में योगदान कर सकती हैं, और चीनी सरकार को चीन को अमेरिकी प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की आवश्यकता है। अमेरिकी व्यापार उपायों के जवाब में, चीनी सरकार ने ट्रम्प प्रशासन पर राष्ट्रवादी संरक्षणवाद में शामिल होने का आरोप लगाया और जवाबी कार्रवाई की। 2019 तक व्यापार युद्ध बढ़ने के बाद, 15 जनवरी, 2020 को दोनों पक्ष एक चरण एक समझौते पर पहुँचे, हालाँकि तनाव जारी रहा। ट्रम्प प्रेसीडेंसी के अंत तक, व्यापार युद्ध को व्यापक रूप से एक विफलता के रूप में वर्णित किया गया था। अमेरिका से तनाव के बीच चीन हर कदम पर विश्व ताकत बनने की अपनी चाल चलता रहा है। चीन अपने पड़ोसी देशों की जमीन को हथियाने की बड़ी स्तर पर कोशिश कर रहा है। काफी कोशिशों में चीन कामयाब भी रहा है। डोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम के साथ चल रहे सीमा विवाद के कारण इन देशों के साथ चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं। भारत के साथ भी चीन युद्ध करने की फिराक में हैं। अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख को लेकर काफी लंबे समय से चीन और भारत के बीच गतिरोध चल रहा है। चीन अपनी सीमाओं का विस्तार करके अपने पड़ोसी देश पर कब्जा करने की मंशा रख रहा है।
कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा जा रहा है। चीन के वुहान शहर से निकले इस वायरस ने दो साल से विश्व की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है। यह वायरस विश्वभर में चीन ने एक नीति के तहत फैलाया है या नहीं इसकी जांच जारी है लेकिन कोरोना वायरस के कारण चीन को कम लेकिन विश्व के बड़े-बड़े देशों की कमर टूट गयी है। अमेरिका जैसी विश्वताकत ने भी कोरोना वायरस महामारी के सामने अपने घुटने टेक दिए हैं। भारत में कोरोना वायरस की पहली और दूसरी लहर ने खतरनाक तबाही मचाई है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक चीनी कंपनियों से बनी चीजों का लोग बहिष्कार कर रहे हैं। जहां हथियारों को बेचने में चीन सबसे आगे हुआ करता था अब चीन से कई देश हथियार खरिदने से बच रहे हैं। इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम के साथ चीन के संबंध काफी खराब हैं, जिसके कारण यह देश चीन से कोई हथियार नहीं खरिदना चाहते हैं। वहीं भारत भी आत्मनिर्भर आभियान के तहत काफी हथिहार भारत में ही बनाने की कोशिश कर रहा हैं। यही कारण है कि साल 2016-20 के बीच भारत के हथियारों के आयात में 33 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।