लंदन। हाल ही में पाकिस्तान में आर्थिक मामलों के सलाहकार अब्दुल हफीज शेख ने बताया कि देश में गधों की आबादी 55 लाख से ज्यादा हो जाएगी। इस खस्ताहाल पाकिस्तान के लिए अच्छी खबर माना जा रहा है। वहां इसलिए क्योंकि पाकिस्तान चीन को हर साल 80 हजार गधे भेजता है, जिसके बदले मोटी कीमत मिलती है। गधों की संख्या और बढ़े, इसके लिए चीन की कंपनियों ने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है। ट्रेडिनशनल दवाओं पर काफी यकीन करने वाले चीन में गधे के मांस से दवा बनाई जाती है, जो काफी लोकप्रिय है। गधों के चमड़े से बनने वाले जिलेटिन यानी गोंदनुमा पदार्थ से चीन में एजियाओ नाम की दवा बनाई जाती है। ये दवा शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दी जाती है। इसके अलावा जोड़ों के दर्द में भी ये कारगर दवा मानी जाती है। चीन में दवा की भारी मांग है। इसका कारोबार लगभग 130 बिलियन डॉलर का माना जाता है। दावा किया जाता है कि सांप, बिच्छू, मकड़ी और कॉक्रोच जैसे जीव-जंतुओं से बनने वाली इन दवाओं से कैंसर, स्ट्रोक, पर्किंसन, हार्ट डिसीज और अस्थमा तक का इलाज होता है।
चीन में गधों की इसी मांग के कारण कई देश उस गधों की सप्लाई कर रहे हैं। गधों पर काम करने वाली ब्रिटिश संस्था के अनुसार चीन में हर साल इसी दवा के लिए 50 लाख से ज्यादा गधों की जरूरत होती है। इसी जरूरत को पूरा पाकिस्तान और अफ्रीका जैसे कई देश चीन को गधे भेज रहे हैं। बीते 6 सालों में इसकी जरूरत बढ़ी है और इसके साथ ही गधों की तस्करी भी बढ़ी। रिपोर्ट के मुताबिक चीन की मांग को पूरा करने के लिए गर्भवती गधे, और बच्चे गधे और बीमार जानवरों को भी सीमा पार कराया जा रहा है। दूसरी ओर गधों के प्रजनन की दर दूसरे जानवरों से कम है और गधे के बच्चे को मैच्योर होने और प्रजनन लायक होने में भी काफी वक्त लगता है। यही वजह है कि इसकी संख्या चीन में बढ़ती दवा की लोकप्रियता के साथ बड़ी तेजी से घटी है। गधों के साथ हो रही बर्बरता को देखकर चीन में ट्रेडिशनल दवाओं पर काम कर रही संस्था ने इसपर रोक लगाने की भी कोशिश की। संस्था का मानना है कि बीफ, पोर्क या चिकन के जिलेटिन को भी दवा बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही शाकाहारी लोगों के लिए दवा में पेड़ों का जिलेटिन लिया जा सकता है।