-दुनिया भर के वैज्ञानिक लगातार कर रहे हैं स्टडी
लंदन। कोरोना वायरस से दुनिया के सामने एक डराने वाली चेतावनी सामने आई है। बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि बारिश पारंपिरक बीमारियां तो होंगी ही इसके साथ ही कोरोना वायरस का खतरा और बढ़ने वाला है। कई वैज्ञानिक इसे वायरस की दूसरी लहर भी बता रहे हैं। इस बारे में लगातार स्टडी चल रही है कि बदलते मौसम का वायरस पर क्या असर हो सकता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के मुताबिक पानी से वायरस खत्म नहीं होते हैं। बल्कि नमी और कम तापमान में वायरस के जिंदा रहने और पनपने का खतरा बढ़ता ही है। अब चूंकि अधिकांश देश लॉकडाउन हटा रहे हैं तो इस दौरान बारिश के पानी में एक्सपोज होना संक्रमण का खतरा और बढ़ाएगा।
वैज्ञानिकों ने बारिश को लेकर जताई चिंता:
यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर में एपिडेमियोलॉजी विभाग की वैज्ञानिक डॉ जेनिफर होर्ने ने एक इंटरव्यू में बारिश को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि बारिश के पानी में वायरस की सफाई करने लायक असर नहीं होता है। और न ही ये वायरस को खत्म कर पाता है, बल्कि बारिश का मौसम कई सारी मौसमी बीमारियां लेकर आता है, जिनमें वायरस और बैक्टीरियल दोनों तरह की बीमारियां हैं। चूंकि कोरोना भी वायरस है इसलिए ये भी दूसरे वायरसों की तरह ही व्यवहार करेगा, ऐसा माना जा रहा है। यह ठीक उसी तरह है कि हाथ पानी से धोएंगे तो वायरस नहीं मरेगा, साबुन लगाना पड़ेगा। फोर्ब्स मैगजीन में आई एक रिपोर्ट में साल 2017 की एक स्टडी का हवाला है। साइंस जर्नल इंटरनेशनल सोसायटी फॉर माइक्रोबियल इकॉलॉजी में आई ये स्टडी बताती है कि बारिश का पानी बैक्टीरिया को तो फिर भी खत्म कर पाता है, लेकिन वायरस के पनपने के लिए ये काफी अनुकूल मौसम है। साल 2012 में हुई एक स्टडी के ट्रेंड भी इसी ओर इशारा करते हैं कि बारिश का मौसम कोरोना संक्रमण को और बढ़ा सकता है।
कई चीजों पर निर्भर करता है वायरस का प्रसार:
साइंस जर्नल करंट ओपिनियन इन वायरोलॉजी में आई इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने वायरस-रेनवॉटर रिलेशनशिप का अध्ययन किया। इसके मुताबिक वायरस किस तेजी से फैलता है ये सिर्फ वायरस की संक्रामकता पर नहीं, बल्कि कई चीजों पर निर्भर करता है। इसमें मौसम, ह्यूमिडिटी, तापमान और हवा का बहाव भी शामिल हैं। श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले सारे वायरस इसी तरह से फैलते हैं। इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए मलेशिया में स्टडी हुई। इस दौरान देखा गया कि बारिश के मौसम में वहां आरएसवी तेजी से फैलता है। भारत में भी ये स्टडी हुई लेकिन यहां पर अलग-अलग हिस्सों में बारिश में असमानता के कारण वायरस के फैलाव का प्रतिशत अलग-अलग रहा।