बीजिंग । लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय जमीन पर नजरें गडा़ए बैठा चीन अब पानी पर कब्जे की योजना बना रहा है। चीन बह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा 60 गीगावाट का बांध बनाने की तैयारी में है। यह बांध तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में बनाया जा रहा है। चीन 2060 तक कार्बन तटस्थता हासिल करना चाहता है इसीलिए जहां एक ओर चीन तिब्बत में बांध बनाने की योजना बना रहा है। चीन की तिब्बत में नदी पर बांध बनाने की योजना को विशेषज्ञों ने चिंता जताकर कहा कि दुख की बात है कि इस बारे में तिब्बत के लोगों से कोई सलाह नहीं ली जा रही। तिब्बत नदी दुनिया की सबसे ऊंची नदी है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई करीब 16404 फुट है। यारलुंग त्सांग्पो या ब्रह्मपुत्र नदी पश्चिम तिब्बत के ग्लेशियर से निकलती है। ये भारत के पूर्वोत्तर हिस्से से होकर बहकर बांग्लादेश तक जाती है। ये 8858 फुट गहरी घाटी का निर्माण करती है। उनका कहना है कि चीन के इस बांध के कई दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।
नदी विशेषज्ञ ब्रियान इयलेर के मुताबिक चीन को जीवाश्म ईंधन से स्वस्छ ऊर्जा की बढऩे में नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इस बांध से पैदा होने वाली बिजली से वहां इस नुकसान की भरपाई करना चाहता है। उनका कहना है कि चीन के पहले से ही हाइड्रो पावर के मामले में सरप्लस बिजली है लेकिन वह एक खास मकसद से इस विशालकाय बांध को बनाना चाहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय नदियों के मामले में चीन को भारत पर रणनीतिक बढ़त हासिल है। रिपोर्ट में कहा गया है, चीन ने तिब्बत के जल पर अपना दावा ठोका है जिससे वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावडी, सलवीन, यांगट्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है। ये नदियां पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, म्यामांर, लाओस और वियतनाम में होकर गुजरती हैं। इनमें से 48 फीसदी पानी भारत से होकर गुजरता है। इसकारण ब्रह्मपुत्र नदी पर सबसे बड़ा बांध बनना भारत और बांग्लादेश के लिए एक चिंता का विषय है।