चीन और रूस ने अंतरराष्ट्रीय लूनार रिसर्च स्टेशन के संयुक्त निर्माण के लिए समझौता किया

Updated on 12-03-2021 06:47 PM

मास्को चीन और रूस ने अंतरराष्ट्रीय लूनार रिसर्च स्टेशन के संयुक्त निर्माण के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। बताया जा रहा है कि समझौता रूस की नासा से दूरी का एक अहम संकेत है, जो आने वाले समय में अंतरिक्ष प्रतिस्पर्धा को एक अलग दिशा दे सकता है। इसके अलावा समझौता चीन को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्षेत्र में और ज्यादा महत्व मिलने का भी संकेत है। समझौते पर चीनी स्पेस एजेंसी के प्रमुख जांग केजियान और रूसी स्पेस एजेंसी प्रमुख रोसमोसकोस के प्रमुख दिमित्री रोगोजिन ने हस्ताक्षर किए। सीएनएसए के अनुसार दोनों देश चंद्रमा पर एक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का निर्माण करेगा, जिसके लिए वे आपसी परामर्श और सहयोग करने वाले है।

यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों के साथ उन देशों के लिए खुली रहेगी, जो इसमें दिलचस्पी रखते हैं। परियोजना का लक्ष्य अंतरिक्ष के उपयोग और मानव के शांतिपूर्ण अन्वेषण को बढ़ावा देने और वैज्ञानिक आदान प्रदान के लिए किया जाएगा।चीन पहले से ही कई देशों के साथ मिलकर खुद का एक इटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बनाने के लिए पहले से ही काम कर रहा है। रूस का कदम नासा से दूरी बनाने की शुरुआत माना जा रहा है। 1990 के दशक की शुरुआत में शीतयुद्ध खत्म होने के बाद रूस नासा से सहयोग करने को तैयार होकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भी रूस ने अहम भागीदारी निभाते हुए सहयोग किया था। यहां तक कि रूस ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन तक अमेरिकी और अन्य सभी देशों के यात्रियों को आईएसएस तक पहुंचाने का काम भी किया था। लेकिन पिछले साल नासा ने आर्टिमिस अभियान की तैयारी शुरू करते समय एक आर्टिमस अकॉर्ड जारी किया था, जिसमें चंद्रमा और अंतरिक्ष उत्खनन के लिए अपने सहयोगियों के लिए कुछ दिशा निर्देशों की अनुशंसा की गई थी।

चीन ने पहले इसका खुलासा किया था, वह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बनाना चाहता है।इस अभियान में पहले रोबोट्स को भेजने की तैयारी थी और उसके बाद मानवीय अभियान बाद से भेजे जा सकते हैं। यह अभियान 2030 दशक के शुरुआती सालों में शुरु हो सकता है। जहां नासा ने भी अपने आर्टिमस समझौते में कई देशों को शामिल किया है, तो वहीं चीन पहले ही अपने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कई सहयोगी बना चुका है। रूस का चीन की ओर झुकाव अमेरिका के वर्चस्व एवं एकाधिकार को कमजोर कर सकता है।

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