रांची । महेंद्र सिंह धोनी के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा के साथ ही भारतीय क्रिकेट इतिहास के एक युग का अंत हो गया।
धोनी के इस निर्णय से झारखंड समेत देश भर के उनके प्रशंसक हैरान रह गए। भारतीय क्रिकेट में धोनी के योगदान को देखते हुए कम से कम उनके लिए एक विदाई मैच तो आवश्यक ही था। यह एक संयोग ही है कि जब धोनी भारतीय टीम में शामिल हुए तो उस समय भारतीय टीम के कप्तान सौरभ गांगुली हुआ करते थे और अब जब धोनी ने संन्यास लिया है तो बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरभ गांगुली ही है। दरअसल धोनी ने उस महान परंपरा का निर्वाह किया जिसमें संन्यास लेने के बाद लोग पूछते हैं उसने अभी क्यों संयास ले लिया , अभी तो उसमें बहुत क्रिकेट बचा हुआ था। जबकि दूसरे तरह के लोग ऐसे होते हैं जिनके बारे में लोग चर्चा करते हैं अब इस खिलाड़ी का प्रदर्शन निम्न स्तरीय है और यह क्यों नहीं संन्यास ले रहा है। महान सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर ने भी उस समय संन्यास लिया था जब उनमें काफी क्रिकेट बचा था और लोग चाहते थे ये अभी खेलते रहे लेकिन दोनों खिलाड़ियों ने उस समय संन्यास लिया जब लोग यह पूछते थे इन दोनों ने अभी क्यों संन्यास ले लिया। धोनी ने भी उसी महान परंपरा का परिचय दिया।
बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से उठ कर धोनी ने वो सब कुछ हासिल किया जो ख्वाब सा दिखता है। धोनी खेलकूद के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय हस्ती होने के साथ साथ, एक बड़े ब्रांड के रूप में उभरे लेकिन किसी ने सफलता उनके सर पे चढ़ते नही देखा। पिता पान सिंह और माता देविका देवी तो उनके रेलवे टिकट कलेक्टर की नौकरी से खुश थे। उत्तराखंड के गांव से निकल के परिवार रांची आ गया था जहां धोनी की परवरिश हुई। धोनी ने जब क्रिकेट खेलना शुरू किया तब बिहार और झारखंड से निकल कर बहुत थोड़े ही लोग देश का प्रतिनिधित्व कर पाए थे। जो चुने भी गए उनमे से कोई बड़ी छाप नही छोड़ पाया था। लेकिन धोनी तो धुनी थे। चेहरा भले साधारण था लेकिन हेयर स्टाइल उन्होंने शुरू के दिनों में जॉन अब्राहम जैसी रखी और लक्ष्य रखा कि खेलेंगे तो एडम गिलक्रिस्ट की तरह।
एक ख्वाब देखा और अपनी क्षमता से विश्वास डिगने नही दिया। उसी समय एक मोड़ आया। मौका था 1999-2000 का बिहार बनाम पंजाब कूच बिहार ट्रॉफी का मैच। इस मैच में बिहार ने 357 रन बनाए। धोनी ने सबसे ज्यादा 84 रन बनाए। लेकिन मैच में पंजाब ने बिहार को धो दिया।उस समय देश के उभरते खिलाड़ी युवराज सिंह ने अकेले 358 रन बना दिये। ये वो जादुई घड़ी थी जब धोनी ने खुद के लिए बेंच मार्क तय कर दिया। अब धुन थी युवराज जैसा बनाना है। इसके बाद शुरू हुआ परिश्रण और जद्दोजहद का दौर। दो युवा विकेटकीपर पार्थिव पटेल और दिनेश कार्तिक चयनकर्ताओं की पहली पसंद थे। ये अलग बात थी कि दोनों अपने अवसरों का उचित लाभ नही ले सके और एक दिवसीय मैचों में राहुल द्रविड़ को विकेटकीपर की जिम्मेदारी उठानी पड़ी।
घरेलू क्रिकेट में महेन्द्र सिंह धोनी के धुँआधार प्रदर्शन ने सौरभ गांगुली और रवि शास्त्री का ध्यान आकर्षित किया। सन 2004 में बांग्लादेश के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम में जगह तो मिल गयी लेकिन प्रदर्शन कमजोर रहा। लोगो ने सोचना शुरू किया कि ये युवा भी भारतीय टीम में चंद दिनों का मेहमान है। लेकिन पाकिस्तान में धोनी ने जबरदस्त बल्लेबाजी कर तहलका मचा दिया। लाजवाब शतक और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तारीफ के पल बांध दिए, तालियां बजाई, और उसके बाद धोनी ने पीछे मुड़ के ना देखने की कसम खाई।
बाद के दिनों में हिंदुस्तान ने अपने सर्वश्रेष्ठ कप्तान के दर्शन किये। ना भूतो ना भविष्यति, क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारत को नम्बर एक बनाने वाले धोनी पहले कप्तान बने। टेस्ट मैचों में आई सी सी की विश्व रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुचने के अलावा उन्होंने भारत को 2011 में एकदिवसीय और 2007 में 20-20 का विश्व विजेता भी बनाया। धोनी खुद को हमेशा कठिन परिस्थितियों के लिए रिज़र्व रखते थे। नम्बर 6-7 पर आ के एक दिवसीय मैचों में 50 से ऊपर का औसत कायम रखना उनके दृढ़ संकल्प का प्रतीक था। उन्होंने 90 टेस्ट मैचों में 4876 रन बनाये जिसमे 6 शतक शामिल थे। 350 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 10773 रन बनाये जिसमे 10 शतक शामिल थे, और 98 टी 20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 1617 रन बनाए। विकेट के पीछे टेस्ट मैचों में 297, एक दिवसीय अंतराष्ट्रीय मैचों में 466 और टी 20 अंतराष्ट्रीय मैचों में 99 शिकार किये।
किसी लक्ष्य का पीछा कैसे करना है, उसके लिए उन्होंने नई गाथा लिखी। एक कप्तान के तौर पर उन्होंने बताया कि शांत रह कर आक्रामक कप्तानी कैसे की जाती हैं । धोनी का जलवा घरेलू आई पी एल में भी दिखा। उनके नेतृत्व में चेन्नई सुपर किंग ने न केवल सर्वाधिक बार इसे जीता बल्कि वो प्रत्येक वर्ष शीर्ष टीमों में बनी रही। हालांकि आईपीएल खेलना अभी भी धोनी जारी रखेंगे लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी यादें अब शेष रह जाएंगी।