बीजिंग । कोरोना महामारी के खिलाफ दुनिया में जारी जंग में इसका वैक्सीन ही सबसे बड़ा हथियार है। भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू हो गए हैं। लगभग हर जगह यह काम अलग-अलग चरणों में किया जा रहा है। खास बात है कि कई जगह वैक्सीन लगाने के मामले में स्वास्थ्य कर्मियों के बाद बुजुर्गों और बीमार लोगों को तरजीह देने की बात कही जा रही है। लेकिन वुहान के शोधकर्ताओं ने इस बात पर संदेह जताया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को भी पहले वैक्सीन दी जानी चाहिए, क्योंकि वे बुजुर्गों से ज्यादा तेजी से वायरस फैला सकते हैं। ताजा प्रकाशित अध्ययन में दावा किया गया है कि बच्चे वायरस को काफी तेजी से फैला सकते हैं। इस स्टडी में शामिल 20 हजार से ज्यादा परिवारों पर की गई है। जिसमें वुहान सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन यानि सीडीसी की तरफ से पुष्टि किए गए कोरोना के लक्षण और एसिम्प्टोमैटिक लोगों को शामिल किया गया था। शोधकर्ताओं की मकसद इस स्टडी के जरिए यह जानना था कि घरों में सीर्स-2 फैलाने का खतरा किससे सबसे ज्यादा हो सकता है।
वहीं, इस अध्ययन से मिली जानकारी के आधार पर रिसर्चर्स ने कहा कि भले ही बच्चों को कोरोना वायरस की चपेट में आने का खतरा कम है, लेकिन बुजुर्गों के मुकाबले ये ज्यादा तेजी से वायरस फैला सकते हैं। ऐसे में पात्र बच्चों और उनकी देखभाल करने वालों को पहले वैक्सीन दी जानी चाहिए। चूंकि बच्चे वायरस को ज्यादा तेजी से फैला सकते हैं, इसी के चलते जानकारों ने स्कूलों को दोबारा खोले जाने को लेकर भी चिंता जताई है। अध्ययन में पता चला कि प्री सिम्प्टोमैटिक मरीज ज्यादा संक्रामक होते हैं। जबकि, सिम्पटम्स वाले व्यक्ति के मुकाबले एसिम्प्टोमैटिक कम संक्रामक होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन्क्यूबेशन पीरियड के दौरान लक्षण नजर आने वाले लोग ज्यादा संक्रामक होते हैं। अध्ययन के मुताबिक, बच्चों और किशोर बड़ी उम्र के लोगों की तरह ही कोरोना के लक्षणों का सामना करते हैं, लेकिन उनमें गंभीर बीमारी की चपेट में आने की संभावना कम ही होती है।