वाशिंगटन । अमेरिका के लिए बाइडन प्रशासन ने हानिकारक गैसों के उत्सर्जन की सीमा तय कर दी। अमेरिका में सन 2005 में हानिकारक गैसों का जितना उत्सर्जन हो रहा था, उसकी मात्रा 2030 तक घटाकर आधी कर दी जाएगी। अमेरिकी प्रशासन ने आशा जताई है कि बाकी के बड़े देश भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों के उत्सर्जन को लेकर इसी तरह का लक्ष्य निर्धारित करेंगे। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पर्यावरण सुधार के लिए पेरिस समझौते से पीछे हटने के कदम की भरपाई के लिए बाइडन प्रशासन अब प्रभावी प्रयास कर रहा है। अमेरिका चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करने वाला देश है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने वर्चुअल समिट की शुरुआत करते हुए हानिकारक गैसों का उत्सर्जन 2005 के स्तर से 52 प्रतिशत तक कम करने की आवश्यकता जताई। बाइडन ने कहा, इस दशक में हमें ऐसे फैसले लेने हैं जिनसे पर्यावरण को लेकर पैदा होने वाले दुष्परिणामों से बचा जा सके। दो दिन के इस समिट में भारत, चीन, रूस समेत 40 देशों के नेता भाग ले रहे हैं। समिट में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अमेरिका की घोषणा को हालात बदलने वाला बताया। कहा कि बड़े देशों को इस घोषणा से सबक लेना चाहिए। जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने 2030 तक जापान के हानिकारक गैसों का उत्सर्जन 46 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया। यह लक्ष्य वहां की औद्योगिक लॉबी की 26 प्रतिशत उत्सर्जन कम करने की मांग से काफी ज्यादा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2005 के स्तर को मानक मानते हुए 2030 तक उसका 45 प्रतिशत तक गैस उत्सर्जन कम करने का आश्वासन दिया। अमेरिका में हो रही यह समिट राष्ट्रपति बाइडन की उस बड़ी योजना का हिस्सा है जिसके तहत 2050 तक अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त बनाना है। बाइडन ने आश्वासन दिया है कि इसके चलते दसियों लाख अच्छे तनख्वाह वाली नौकरियां पैदा होंगी। लेकिन विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं को आशंका है कि बाइडन की यह योजना अमेरिका की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगी। बाइडन ने क्लीन एनर्जी इकोनॉमी की बात कही है जिसके चलते अर्थव्यवस्था का विकास होगा और पर्यावरण की सुरक्षा भी होगी। इससे पृथ्वी पर जीवन बचाने का रास्ता साफ होगा। बाइडन ने पर्यावरण को लेकर अपनी सोच पद संभालते ही सार्वजनिक कर दी थी। उन्होंने साफ कर दिया था अमेरिका न केवल पेरिस समझौते में वापस लौटेगा बल्कि पर्यावरण सुधार की मुहिम में वह पहले की तरह दुनिया का नेतृत्व भी करेगा। इस बीच पर्यावरण सुधार की पक्षधर ग्रेटा थनबर्ग ने लकड़ी को ईंधन के रूप में प्रयोग करने के चलन पर रोक लगाने की अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से अपील की है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अमेरिका के पेरिस समझौते में लौटने का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, उनका देश कार्बन उत्सर्जन की पूर्व में किए गए वादों का सम्मान करेगा। चीन ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने और 2060 तक कार्बन का उत्सर्जन शून्य करने की घोषणा की है। चीन ने अमेरिका की तर्ज पर 2030 के लिए कोई बड़ी घोषणा करने में हिचक दिखाई है। लेकिन चिनफिंग ने कहा, 2025 तक कोयला आधारित उद्योगों में उपभोग की मात्रा में सीमित बढ़ोतरी की अनुमति होगी, उसके बाद 2030 तक कोयले का इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से कम किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि चीन दुनिया में सबसे ज्यादा हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करने वाला देश है। चिनफिंग ने कहा, पर्यावरण सुधार की दिशा में चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा। उन्होंने समिट में आमंत्रित करने के लिए राष्ट्रपति बाइडन और उप राष्ट्रपति कमला हैरिस का आभार भी जताया। पर्यावरण में सुधार के उपायों को लेकर धन के इंतजाम पर भी चर्चा हुई। राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, अच्छे विचार और अच्छी नीयत ही किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पर्याप्त नहीं होते। उसके लिए हमें धन की जरूरत भी होती है। अगर हमें मौसम में आ रहे बदलावों की समस्या से लड़ना है तो बड़ी धनराशि की जरूरत होगी। इसके लिए अमेरिका एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय योजना की घोषणा करेगा।