वाशिंगटन। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविड-19 जांच किट से होने वाली जांच से गलत रिपोर्ट आने के मामलों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि यह महामारी को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने सरकारी एजेंसियों को सुझाव दिया है कि वे निर्माताओं को जांच की दक्षता संबंधी जानकारी मुहैया कराएं। शोधकर्ताओं ने कहा कि बड़े पैमानों पर जांच की कमी अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा खोलने में प्रमुख बाधा है। शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने कहा कि जांच का दायरा बढ़ाने में प्रगति हुई है लेकिन नतीजों की परिशुद्धता अब भी चिंता का विषय है। शोधकर्ताओं ने कहा,संक्रमण का पता लगाने के लिए होने वाली जांच में गले और नाक से लिए गए नमूनों का इस्तेमाल होता है और यह दो तरीकों से गलत हो सकता है। उन्होंने कहा, गलती से नमूने पर संक्रमित होने का लेबल लगाने पर व्यक्ति को अनावश्यक रूप से पृथकवास में रहने, उसके संपर्क में आए लोगों की पहचान जैसे असर हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक मौजूदा जांच किट के सटीक नतीजे आने की दर काफी हद तक कम है। उन्होंने कहा कि पिछले अध्ययनों के मुताबिक इन किट की संवेदलशीलता 70 प्रतिशत तक हो सकती है। शोधपत्र ने लिखा,संवेदनशीलता के आधार और जांच से पहले 50 प्रतिशत सटीक नतीजे आने की संभावना के आधार पर जांच के बाद 23 फीसदी मामलों में संक्रमण का पता नहीं चलने की आशंका है। यह किसी को संक्रमण मुक्त मानने के स्तर से कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि इन जांच किटों की संवेदनशीलता में अंतर और जांच को प्रमाणित करने के लिए मानक प्रक्रिया की अनुपस्थिति चिंता का विषय है। विभिन्न अध्ययनों की समीक्षा करने के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया के कई हिस्सों में संक्रमितों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं जो चिंता का विषय है। वैज्ञानिकों ने 957 कोरोना संक्रमितों या संक्रमण के संदिग्धों पर किए गए अध्ययन की समीक्षा करते हुए कहा कि जांच के गलत नतीजे आने की आशंका दो से 29 प्रतिशत तक है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा कि यह पुख्ता सबूत नहीं है क्योंकि इन मरीजों की जांच के तरीके स्पष्ट नहीं है।