भोपाल । मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरियों की भर्ती
परीक्षाओं के मामले में व्यावसायिक परीक्षा मंडल जैसी एजेंसी पहले ही कठघरे में हैं।
अब केंद्र सरकार की राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी (एनआरए) बनाए जाने की घोषणा से एक बार फिर
मप्र के व्यापमं घोटाले की यादें ताजा हो गई हैं।
व्यापमं घोटाले में नौ भर्ती परीक्षाओं की गड़बड़ी अदालत में विचाराधीन है। ऐसी
लगभग 74 भर्ती परीक्षाओं को संदिग्ध मानकर जांच के दायरे में लिए जाने की मांग अब तक
जारी है। जांच एजेंसियों एसटीएफ और सीबीआइ ने ऐसी भर्ती परीक्षाओं में सैकड़ों आरोपितों
के खिलाफ चालान भी पेश कर दिए हैं। व्यापमं घोटाले में प्री-इंजीनियरिंग टेस्ट (पीईटी),
प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) के अलावा पुलिस की सूबेदार, प्लाटून कमांडर, उप निरीक्षक
व आरक्षक, वन विभाग की वनरक्षक, खाद्य आपूर्ति व नापतौल विभाग की कनिष्ठ आपूर्ति व
नापतौल निरीक्षक, स्कूल शिक्षा विभाग की संविदा शिक्षक- गुरुजी और परिवहन विभाग की
आरक्षक, डाटा एंट्री ऑपरेटर पदों की भर्ती में हुई गड़बड़ियों के मामले भी सामने आ चुके
हैं। इन सरकारी नौकरियों के लिए व्यापमं के पंकज त्रिवेदी, नितिन मोहिंद्रा जैसे अधिकारियों
और उनकी टीम ने मंत्री-नेता, नौकरशाह, उनके रिश्तेदारों और असरदार लोगों का साथ लेकर
घोटाला किया और योग्य लोगों को रोजगार से वंचित किया। उस समय भर्तियों की चौपट हुई
व्यवस्था का असर अब तक दिखाई दे रहा है। इस बारे में पूर्व विधायक पारस सकलेचा का कहना
है कि व्यापमं ने 2004 से 2014 के बीच 74 भर्ती परीक्षाएं कराईं जिनमें घोटाला किया
गया है। नितिन मोहिंद्रा की कम्प्यूटर हार्ड डिस्क में इनमें से 37 परीक्षाओं के प्रमाण
भी हैं। मगर एसटीएफ-सीबीआइ द्वारा कुछ ही परीक्षाओं में गड़बड़ी की जांच की जा रही है
इसलिए व्यापमं द्वारा 2004 से 2014 के बीच सरकारी नौकरियों के लिए हुई सभी 74 परीक्षाओं
की जांच होना चाहिए ताकि अनैतिक रास्ते से नौकरी पाने वाले लोग सामने आ सकें। वहीं
मप्र शासन के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि भर्ती एजेंसी ऐसी
हो जिसमें गड़बड़ी की गुंजाइश कम हो मध्य प्रदेश में सरकारी नौकरी में भर्ती की अब तक
जितनी भी संस्थाएं रहीं, उनमें घपले-गड़बड़ी के कारण मेरिट के आधार पर युवाओं को मौका
नहीं मिल पाया है। भर्ती एजेंसी ऐसी हो जहां निष्पक्षता हो और राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी
(एनआरए) के माध्यम से भर्ती अच्छा विचार है। मप्र मूल के ही लोगों को रोजगार देने में
कई संवैधानिक परेशानियां हैं जिन्हें पहले दूर किया जाना चाहिए।