जेनेवा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की खुली चर्चा के बाद भारत के अध्यक्षीय वक्तव्य में चीन को कड़ा संदेश देते हुए इस बात की पुष्टि की गई है कि 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन में सामुद्रिक गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित किया जा चुका है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने एक वीडियो संदेश में कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में समुद्री सुरक्षा पर हुई उच्चस्तरीय बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही। तिरुमूर्ति ने कहा कि सुरक्षा परिषद की इस बैठक में पहली बार समुद्री सुरक्षा की समग्र अवधारणा पर अध्यक्षीय वक्तव्य को स्वीकार किया गया है। इस वक्तव्य में समुद्री डकैती, सशस्त्र लूट और अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध के उल्लेख के अलावा स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 1982 का संयुक्त राष्ट्र का सम्मेलन सामुद्रिक गतिविधियों के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित करता है।
पंद्रह देशों के निकाय द्वारा सर्वसम्मति से अपनाए गए अध्यक्षीय वक्तव्य (पीआरएसटी) में सुरक्षा परिषद ने पुष्टि की है कि 10 दिसंबर 1982 को अमेरिका में हुए संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) में परिलक्षित अंतरराष्ट्रीय कानून समुद्री गतिविधियों पर लागू होने वाले कानूनी ढांचे को निर्धारित करता है। भारत के इस अध्यक्षीय वक्तव्य को सुरक्षा परिषद द्वारा अपनाए जाने को चीन के लिए कड़ा संदेश माना जा रहा है, जो दक्षिण चीन सागर समेत विभिन्न समुद्री क्षेत्रों पर अपना दावा जताता रहा है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इससे पहले सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने समुद्री सुरक्षा बढ़ाने और इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उच्च स्तरीय खुली परिचर्चा की अध्यक्षता की थी। इस दौरान, प्रधानमंत्री ने समुद्री व्यापार और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विवादों के शांतिपूर्ण समाधान समेत समावेशी समुद्री सुरक्षा रणनीति के लिए पांच सिद्धांत पेश किए।