नई दिल्ली । आधार की वैधता बरकरार रखने के सितंबर 2018 के अपने फैसले के खिलाफ दायर समीक्षा याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्य संवैधानिक पीठ 9 जून को सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस एस।ए। बोबडे की अध्यक्षता में समीक्षा याचिका पर फैसला लिया जाएगा। 26 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 से फैसला सुनाते हुए 12 डिजिट के यूनिक नंबर की संवैधानिकता को माना था। कोर्ट ने कहा था कि सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं को पाने के लिए इसे जरूरी किया जा सकता है, लेकिन मोबाइल या इंटरनेट कनेक्शन या बैंक अकाउंट खुलवाने के लिए आधार को बाध्यकारी नहीं किया जा सकता है। सबसे पहले आधार योजना को सुप्रीम कोर्ट में साल 2012 में निजता के अधिकार और संवैधानिक समर्थन न होने को लेकर चुनौती दी गई थी। बाद में संसद में आधार एक्ट 2016 में लाया गया और इसमें आवश्यक तौर पर कानूनी समर्थन दिया गया। हालांकि, आधार के खिलाफ कोर्ट में चुनौती दी गई कि इसे मनी बिल के तौर पर पास किया गया और राज्यसभा में झूठ बोला गया। संविधान के आर्टिकल 110 के मुताबिक, मनी बिल वह होता है जिसमें टैक्सेशनल के प्रावधानों, सरकार की तरफ से ऋण लेने जैसी चीजें होती है। मनी बिल एक बार जो लोकसभा में लाया जाता है और साधारण बहुमत से पास करा लिया जाता है तो फिर उसे राज्य सभा में उनकी सिफारिश के लिए भेज दिया जाता है। मनी बिल को लेकर राज्यसभा की सिफारिश लोकसभा के ऊपर बाध्यकार नहीं है, वो चाहे तो खारिज कर सकता है। वर्तमान सरकार जिसे राज्यसभा में बहुमत नहीं है, उसने एक से ज्यादा मौके पर विवास्पद कानून को पास कराने के लिए मनी बिल का सहारा लिया। जब आधार के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई में संवैधानिक सवाल आया कि क्या संविधान के अंदर निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं? 9 सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मुद्दे को सुना और एक राय से अगस्त 2017 में यह फैसला दिया कि संविधान के आर्टिकल 21 के अंतर्गत निजता मौलिक अधिकार है। पांच वर्षों के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय ने आधार को संवैधानिक मान्यता देते हुए कहा कि कम जानकारी के साथ यह व्यापक जन हित को पूरा करता है।