रफ्तार पकड़ रहा इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बाजार, क्रूड ऑइल का मांग में आएगी कमी

Updated on 09-09-2024 11:52 AM
नई दिल्ली: आज वर्ल्ड EV डे है। इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बाजार धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है। हालांकि एक्सपर्ट मानते हैं कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों को लेकर अभी कई चुनौतियां हैं। ऐसी गाड़ियों की ऊंची कीमत, चार्जिंग के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के अलावा और भी कई समस्याएं देखने को मिल रही हैं।

द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टिट्यूट (TERI) के एक विश्लेषण के अनुसार, इलेक्ट्रिक गाड़ियों को अपनाने से प्रदूषण के साथ कच्चे तेल के आयात, कार्बन उत्सर्जन और ट्रैफिक जाम में कमी आएगी। हालांकि कई चुनौतियां भी बरकरार हैं। पट्रोल या सीएनजी भरवाने की तुलना में इन गाड़ियों को चार्ज करने में अधिक समय लगता है। ऐसे में कम चार्जिंग स्टेशन होना बड़ी परेशानी है।

कीमत ज्यादा होना बड़ा कारण


इलेक्ट्रिक गाड़ियों महंगी भी हैं। लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होने से कीमत काफी बढ़ जाती है। लिथियम के ज्यादातर भंडार कुछ ही देशों में हैं। विश्व में लिथियम भंडार का 65 फीसदी बोलिविया और चिली में हैं। कोबाल्ट का 60 फीसदी भंडार कांगो में हैं। इन धातुओं की लिमिटेड सप्लाई ने इलेक्ट्रिक गाड़ियों की कीमत काफी बढ़ा दी है।

बेहतर करने होंगे चार्जिंग स्टेशन


क्लाइमेट ट्रेंड्स के अनुसार, गाड़ियां खरीदते समय ज्यादातर लोग रिसेल वैल्यू को ध्यान में रखते हैं। इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में रिसेल पर काफी दुविधा है। नीति आयोग के सीनियर स्पेशलिस्ट रणधीर सिंह के अनुसार, इस वक्त हमारे देश में बैटरी की कीमत 165 से 200 डॉलर प्रति किलोवॉट है। सबसे पहले तो हमें चार्जिंग सिस्टम को बेहतर करना होगा।

रफ्तार पर होना चाहिए फोकस


इन गाड़ियों का रोजाना औसत उपयोग 17 से 21 किलोमीटर के बीच है। सड़क पर जो भी इलेक्ट्रिक गाड़ियां उतारी जाएंगी, उनकी न्यूनतम रेंज 80 किलोमीटर और रफ्तार 45 किलोमीटर प्रति घंटा होनी चाहिए। अगर टू-वीलर्स को देखें तो 90 फीसदी से ज्यादा की न्यूनतम रेंज कवर हो जाती है। इन्हें घर या दफ्तर में ही चार्ज किया जा सकता है। इसके लिए बिल्डिंग बाइलॉज में बदलाव की जरूरत है और पार्किंग का 20 फीसदी हिस्सा इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए आरक्षित करना होगा।

अभी सीमित हैं विकल्प


इलेक्ट्रिक गाड़ियों की एक कंपनी की चीफ बिजनेस ऑफिसर रवनीत फोकेला के अनुसार, पट्रोल या डीजल से चलने वाले कोई गाड़ी खरीदते वक्त हमारे पास 40-50 विकल्प होते हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक गाड़ियों में अब भी काफी सीमित विकल्प हैं। फिलहाल कोई रीसेल मार्केट भी नहीं है। हमें होड़ में बने रहने के लिए बेहतर 'बाई बैक पॉलिसी' की जरूरत है।

बैटरी को लेकर सवाल


इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी को लेकर पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं भी हैं। CSE की अनुमिता रायचौधरी ने बताया कि ज्यादातार कार कंपनियां बैटरी की आठ साल की गारंटी दे रही हैं। बैटरी के लिए पॉलिसी भी बन चुकी है। कारों की बैटरी की रिसेल वैल्यू होने की वजह से इनके निस्तारण में जोखिम की संभावना कम है। बैटरी की कीमत 4 से 8 लाख रुपये तक हो सकती है। पुरानी बैटरी देने पर नई बैटरी में पुरानी बैटरी की कंडिशन के हिसाब से छूट मिलती है। यही वजह है कि गाड़ियों की बैटरी निस्तारण में अधिक समस्या नहीं आती। फिर भी चार से पांच साल बाद सही स्थिति पता चलेगी, जब इन गाड़ियों की बैटरी लाइफ खत्म होने लगेगी।
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