रायपुर,।बस्तर के स्वादिष्ट काजू ने कोरोना संकट काल में अंचल में रहने वाले वनवासी परिवारों की आमदनी बढ़ा दी है। नए स्वरूप में पैकेजिंग और बस्तर ब्रांड नेम से इसकी लांचिंग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल में ही की है। बस्तर के स्वादिष्ट काजू की मांग को देखते हुए इसे वन विभाग के संजीवनी स्टोर्स में उपलब्ध कराया गया है। राज्य सरकार ने वनांचल में रहने वाले लोगों को वनोत्पाद के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने की मुहिम के चलते जहां फिर से बंद पड़े काजू प्रसंस्करण को फिर से शुरू किया गया वहीं काजू के समर्थन मूल्य में वृद्धि की गई है।
बस्तर की जलवायु को काजू के लिए अनुकूलता को देखते हुए वहां के वन क्षेत्रों में सत्तर के दशक में काजू के पौधों का रोपण किया गया था। लेकिन वृक्षारोपण के बाद इसके संग्रहण के लिए न तो कोई मेकेनिजम बनाया गया और न ही प्रसंस्करण की ओर ध्यान नहीं दिया गया। जिसके कारण यहां के वनों में उत्पादित काजू ज्यादातर निकटवर्ती ओडि़शा प्रदेश में बिचौलियों के माध्यम से बेचा जाता रहा, जिससे यहां के वनवासियों को काजू का उचित मूल्य नहीं मिल पाता था। संग्राहकों को काजू का संग्रहण दर 50-60 रूपए प्रति किलोग्राम ही प्राप्त होता था एवं प्रसंस्करण इकाई की अनुपलब्धता के कारण प्रसंस्करण मूल्य से भी यहां के हितग्राहियों को वंचित होना पड़ता था। वर्तमान में बस्तर में लगभग 15 हजार हेक्टेयर भूमि पर काजू के सफल वृक्षारोपण विद्यमान है, जिसकी उत्पादन क्षमता 10-12 हजार क्विंटल है।
राज्य में गठित हुई नई सरकार ने वनवासियों को अतिरिक्त आय का जरिया दिलाने के लिए इस ओर ध्यान दिया। बकावंड के वनधन विकास केन्द्र में बंद पड़े काजू प्रसंस्करण इकाई को फिर से शुरू किया। राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष काजू का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 100 रूपए प्रति किलो करने से जहां कोरोना संकट काल में उन्हें रोजगार मिला वहीं इस वर्ष काजू का संग्रहण बढ़कर 5500 क्विंटल हो गया है। इस वर्ष लगभग 6 हजार वनवासी परिवारों द्वारा काजू का संग्रहण का कार्य किया, जिससे हर परिवार को औसतन 10 हजार रूपए की आय हुई। वन धन विकास केन्द्र बकावण्ड में लगभग 300 महिलाओं द्वारा काजू प्रसंस्करण का काम किया जा रहा है। प्रसंस्करण कार्य से क्षेत्र की महिलाओं को 8 माह तक सतत रूप से रोजगार उपलब्ध होगा। इससे प्रति परिवार लगभग 60 हजार रूपए आय संभावित है। कोविड महामारी के दौरान 6300 से अधिक परिवारों को रोजगार काजू वनोपज से ही प्राप्त हो गया।
बस्तर में ICAR Directorate of Cashew Research Puttur, Karnataka के तकनीकी मार्गदर्शन में प्रसंस्करण का कार्य किया जा रहा है। काजू बीज से प्रसंस्करण पश्चात लगभग 22 प्रतिशत काजू प्राप्त होता है। इस वर्ष संग्रहित किए गए 5500 क्विंटल काजू से लगभग 1200 क्विंटल काजू तैयार किया जाएगा। महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए काजू के व्यापार से इस वर्ष 30-50 लाख रूपए लाभ संभावित हैं। प्राप्त लाभ को तेंदूपत्ता की भांति प्रोत्साहन राशि काजू के संग्रहण एवं प्रसंस्करण से संलग्न परिवारों को वितरित की जाएगी। इस प्रकार अब 3 स्तर पर वनवासियों को लाभ प्राप्त होगा। पहला काजू बीज का उचित दाम, दूसरा प्रसंस्करण में 300 परिवारों को रोजगार तथा तीसरा व्यापार से प्राप्त लाभ का 100 प्रतिशत राशि का वितरण।
छत्तीसगढ़ राज्य में देश का लगभग 6 प्रतिशत लघु वनोपज का उत्पादन होता है। न्यूनतम समर्थन मूल्य योजनांतर्गत लघु वनोपज के क्रय की योजना पूरे देश में लागू है। मुख्यमंत्री के अगुवाई में प्रदेश में कोविड-19 विश्व महामारी के साये में विगत 4 माह में इस योजना के अंतर्गत पूरे देश में क्रय किए गए लघु वनोपज का 76 प्रतिशत लघु वनोपज का क्रय छत्तीसगढ़ राज्य के द्वारा किया गया है। सम्पूर्ण देश में विगत 4 माह में लगभग 148 करोड़ रूपए राशि की लघु वनोपज क्रय की गयी, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा 112 करोड़ राशि की लघु वनोपज क्रय की गयी। यह कार्य प्रदेश में 3500 महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से किया गया। इसमें लगभग 40 हजार महिलाओं ने घर-घर जाकर वनोपज का क्रय किया है। राज्य में पूर्व में मात्र 7 लघु वनोपज का क्रय न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत किया जा रहा था, जिसे अब बढ़ाकर 31 लघु वनोपज कर दिया गया है।
महिलाएं रोजगार मिलने से खुश
काजू संग्रहण और प्रसंस्करण कार्य में काम कर रही वन धन विकास केन्द्र बकावण्ड स्व सहायता समूह की प्र्रभारी अध्यक्ष श्रीमती गुनमनी ने बताया कि प्रसंस्करण कार्य से उन्हें माह में 3 हजार से साढे़ तीन हजार तक मिल रहे हैं। इस वर्ष काजू की मात्रा अधिक है, इसलिए लाभ लगभग 5 हजार से 6 हजार रूपए बढ़ने की संभावना है। संग्रहण केन्द्र स्तर समूह की अध्यक्ष श्रीमती हेमबती कहती है कि हमारी समिति को सिर्फ काजू के संग्रहण से मात्र 15 दिनों में 20 हजार रूपए की राशि प्राप्त हुई है। करीतगांव संग्रहण केन्द्र स्तर की प्रेरक श्रीमती जयमनी बघेल की कहना है कि इस वर्ष राज्य सरकार द्वारा काजू का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 100 रूपए प्रति किलो करने से संग्रहण कार्य से जुड़ी महिलाओं को अधिक आर्थिक लाभ हुआ। इसी तरह राजनगर समिति बकावण्ड श्रीमती पद्मनी का कहना है कि काजू प्रसंस्करण से प्राप्त राशि से उन्हें परिवार चलाने में मदद मिली है। इस राशि से राशन, पानी की व्यवस्था हो जाती है। इसी समिति की श्रीमती बेलाबाली बताती हैं कि प्रसंस्करण कार्य से प्राप्त राशि से उनके परिवार के जीवन में सुधार आया है। वे अपने बच्चों को अच्छा पढ़ा-लिखा रही है। ग्राम स्तर संग्रहण केन्द्र की श्रीमती मचनदई, पद्मा और नविना बताती हैं कि प्रसंस्करण कार्य से उन्हें रोजगार मिला है और जीवन यापन में सुधार आया है।