न्याय की देवी की आखों से पट्टी हट गई है, अब अंधा कानून मत कहिएगा महोदय

Updated on 17-10-2024 01:11 PM
नई दिल्ली: 4 अगस्त, 1983 को एक फिल्म रिलीज हुई थी। नाम था- अंधा कानून। अमिताभ बच्चन, रजनीकांत और हेमा मालिनी अभिनीत इस फिल्म का टाइटल सॉन्ग काफी मशहूर हुआ- ये अंधा कानून है... मशहूर संगीतकार आनंद बख्शी ने कोर्ट-कचहरी, वकील-दलील, सुनवाई-फैसले के हालात को शब्द दिए तो किशोर कुमार ने उसे अपनी आवाज देकर कानून को लेकर जन-जन की पुकार माननीयों तक पहुंचा दी। एक जगह किशोर गाते हैं- अस्मतें लुटीं, चली गोली, इसने आंख नहीं खोली। फिर वो कहते हैं- लंबे इसके हाथ सही, ताकत इसके साथ सही। पर ये देख नहीं सकता, ये बिन देखे है लिखता।

आनंद बख्शी ने कानून के अंधे होने के ये सबूत देने के अलावा भी पूरे गीत में बहुत कुछ कहा है। बख्शी का वो कहना और किशोर का उसे गाना, उनके जीवन में कोई रंग नहीं ला सका। अब जब वो दोनों नहीं हैं तो कानून के सबसे बड़े मंच संचालक सुप्रीम कोर्ट ने प्रतीकात्मक ही सही, लेकिन कदम उठाया है। सर्वोच्च न्यायालय में अब न्याय की देवी की आंखों से काली पट्टी हट गई है। वो अब सबकुछ देख सकती हैं, अंधी नहीं रह गईं। लेकिन क्या यही संदेश देने के लिए फिल्म बनाई गई थी कि मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दो, बस सब चंगा हो जाएगा?

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर न्याय की देवी की मूर्ति की आंखें खुल गईं और हाथ में तलवार की जगह संविधान ने ले ली है। यह कानून को सर्वद्रष्टा बताने की कोशिश है। सही है। लेकिन क्या मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा देने का रत्ती भर भी असर कानूनी प्रक्रिया पर पड़ने वाला है? मौजूदा परिस्थितियों में यह सवाल ही बेमानी है। जब लोगों में आम धारणा हो कि थाना-पुलिस और कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगा तो जिंदगी तबाह हो जाएगी, तब मूर्ति की आंखों से पट्टी हटाकर भला क्या सुधर जाना है? न्याय की देवी को सच में आंखें देनी हैं तो आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत होगी। यह तो चीफ जस्टिस भी जानते हैं।

आखिर किसे नहीं पता कि इस देश में सड़क से लेकर अदालत तक, हर जगह कानून की धज्जियां उड़ती हैं और न्याय की देवी यूं ही स्टैच्यू बनी रहती हैं। कोई हरकत नहीं, बिल्कुल संवेदनहीन। सड़कों पर कानून तमाशबीन बनकर खड़ा है, थाने में वह उगाही और उत्पीड़न का अस्त्र बना है तो अदालतों में दलीलों और तारीखों की बेइंतहा ऊबाऊ प्रक्रिया का ऐसा ऑक्टोपस है ये, जिसकी जकड़न में गए तो खैर नहीं।

करीब 80 हजार मुकदमों की ढेर सुप्रीम कोर्ट में ही लगी है। फिर भी अब अंधा कानून कहने की हिमाकत नहीं कीजिएगा महोदय, न्याय की देवी अब सबकुछ देख जो सकती हैं। अब तक अंधे कानून की त्रासदी न्याय की देवी देख नहीं पाती थीं, अब वो खुली आंखों से सब देखेंगी। कम-से-कम उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि देख पाने के कारण न्याय की देवी की मूर्ति में भी संवेदना जग जाए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने वाकई अच्छी पहल की है।
Advt.

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 10 January 2025
पंजाब के अमृतसर में एक और पुलिस चौकी धमाके की आवाज से दहल गई। यह धमाके की आवाज गुरुवार रात करीब 8 बजे सुनाई दी। पुलिस ने बयान जारी कर…
 10 January 2025
हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में आज सुबह एक उद्योग में भीषण आग लग गई है। फॉर्मा उद्योग में जब आग लगी तो नाइट शिफ्ट के लगभग 35 कर्मचारी…
 10 January 2025
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के लिए लगाई गई पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। 17 अक्टूबर…
 10 January 2025
हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर 46 दिन से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके साथ ही कोर्ट में…
 10 January 2025
अयोध्या रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ मनाने को तैयार है। 11 से 13 जनवरी तक उत्सव होंगे। इन 3 दिनों में VIP दर्शन नहीं होंगे। मंदिर ट्रस्ट ने…
 10 January 2025
21वीं सदी के पहले महाकुंभ का आयोजन भी प्रयागराज में हुआ था। 2001 का महापर्व इलेक्ट्रॉनिक और सैटेलाइट युग आने के बाद पहला कुंभ मेला था। इस दौरान अध्यात्म और…
 10 January 2025
दिल्ली के स्कूलों को बम की धमकी एक 12वीं के स्टूडेंट ने भेजी थी। दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को आरोपी स्टूडेंट को हिरासत में लिया।उसने पूछताछ में बताया कि वह…
 10 January 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेरोधा के को-फाउंडर निखिल कामत के साथ पॉडकास्ट किया। कामथ ने गुरुवार को इसका ट्रेलर जारी किया। इसमें पीएम मोदी कहते हैं कि उनसे भी गलतियां…