परिवार की उम्मीदें महिलाओं से बहुत ज्यादा होती हैं। बेटी या बहू घर का काम कर लेगी, खाना बना लेगी, ऐसे में महिलाएं अपना ध्यान नहीं रख पाती हैं और अपनी सेहत से समझौता करती रहती हैं। जब बीमार होने पर वह परिवार वालों का ख्याल नहीं रख पाती हैं तो परिजनों की उपेक्षा का शिकार होने लगती हैं। ऐसे में खुद को खुश रखने के लिए वे 15 दिन में घर से बाहर जरूर निकलें। सहेलियों से मिलें और अपनी फीलिंग शेयर करें। इससे मानसिक तनाव कम होता है और खुशी मिलती है।
परिवार की जिम्मेदारियां क्या हैं और उनमें प्राथमिकता किसे देनी है, अगर एक चार्ट बनाकर चला जाए तो आसानी से वक्त निकल सकता है। जैसे घर के अन्य कामों को हम जिम्मेदारी समझकर करते हैं कि हमें इतने बजे ब्रेकफास्ट बनाना है और इतने बजे लंच बनाना है, इस टाइम पर बच्चों को स्कूल भेजना है, उसी तरह हमें अपने लिए कम से कम आधे घंटे का समय निकालना चाहिए, जिसमें हम यह तय करें कि हमें जिम जाना है या वॉक पर जाना है।
महिलाओं के लिए अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करना जरूरी है। अपना दायित्व परिजनों से भी साझा करें। अगर किसी के छोटे बच्चे हैं तो हर बार जरूरी नहीं कि महिला ही बच्चे को संभाले, पति को भी हाथ बंटाना चाहिए।
घर में अगर मेड या ड्राइवर रखते हैं तो हो सकता है कि शायद वह परफेक्शन न आए। काम को शेयर करना चाहिए, दूसरों की हेल्प लेनी चाहिए। परफेक्शन को बिल्कुल अलग रखना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि अगर हम घर में मेड रख रहे हैं तो इससे दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं। ऐसा करने से आप अपने के लिए वक्त निकाल सकेंगी। उस वक्त में आप शॉपिंग पर जा सकती हैं, मूवी देखने जा सकती हैं। इसके अलावा बच्चों के साथ भी वक्त बिता सकती हैं।
आज के दौर में महिलाओं के पास वक्त कम है और काम ज्यादा। ऐसे में नींद से समझौता करना पड़ता है। इससे चिड़चिड़ापन बढ़ता है। उन्हें थोड़ा टाइम खुद के लिए भी निकालना होगा। जितना जरूरी काम है, उतना जरूरी स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी है।