भोपाल । एक सरकारी कर्मचारी से विधायक तक का सफर तय कर राजनीति में कांग्रेस-भाजपा को भी पछाड़ कर गोंडवाना के सबसे बड़े नेता बने मनमोहन शाह बट्टी का अचानक निधन छिंदवाड़ा को स्तब्ध कर गया है। छिंदवाड़ा में उन्होंने गोंडवाना के नाम से नई राजनीति का सूत्रपात किया था और गांव-गांव में आदिवासी वर्ग में उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि उनके आगे कांग्रेस और भाजपा के नेता भी पानी भरते थे। यह सबकुछ उन्होंने अपने संघर्ष से पाया था जिसका परिणाम था कि उन्हें आदिवासी सीट अमरवाड़ा से एक बार विधायक बनने का भी मौका मिला। इसके बाद उन्होंने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव लड़े थे, भले ही दूसरी बार वे विधायक नहीं बनें लेकिन उनके वोट बैंक के चलते कांग्रेस-भाजपा दोनों के परिणाम प्रभावित होते रहे है। गोंडवाना पार्टी में यदि विवाद न होता तो शायद प्रदेश में मनमोहन शाह बट्टी गोंडवाना पार्टी को भी स्थापित कर चुके होते। किंतु आपसी फूट के चलते पार्टी दोबारा कोई चमत्कारिक परिणाम नहीं दिखा पाई।
-पिछले चुनाव में भाजपा से मांगा था टिकट
पिछले लोकसभा चुनाव में मनमोहन शाह बट्टी भाजपा की टिकिट से छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ने के इच्छुक था। भाजपा का नेतृत्व लगभग उन्हें आदिवासी नेता होने के कारण छिंदवाड़ा से मैदान में उतारने की तेयारी कर चुका था लेकिन जिला भाजपा संगठन के विरोध के चलते न वे भाजपा में शामिल हे सके और न ही भाजपा के टिकिट चुनाव लड़े पाए। हालांकि जब लोकसभा चुनाव का परिणाम आया तब भाजपा को भी यह समझ आ चुका था कि मनमोहन किस गणित से छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव लड़ना चाह रहे थे।
-लगातार करते थे गांवों का दौरा
मनमोहन शाह बट्टी लगातार अमरवाड़ा हर्रई और तामिया के गांवों के दौरा करते थे और आदिवासियों के जीवन उत्थान के लिए बैठकें करते थे। वे ग्रामीणों को समझाते थे कि जब तक तुम्हारे बीच का नेता भोपाल दिल्ली नहीं जाएगा तब तक सही मायने में तुम्हारा उत्थान नहीं हो पाएगा।
-चिरायु अस्पताल में ली अंतिम सांस
मनमोहन शाह बट्टी ने भोपाल के चिरायु अस्पताल में रविवार की शाम अंतिम सांस ली। बताया गया कि स्वास्थ्य खराब होने पर वे यहां भर्ती हुए थे, उन्होंने अपना कोरोना टेस्ट भी कराया था। अस्पताल में भर्ती रहते हुए अचानक ह्दयघात से उनका निधन हो गया।