नई दिल्ली । अर्थव्यवस्था में अब पुनरूद्धार के कुछ ठोस संकेत दिखाई देने लगे हैं। दिसंबर में जहां एक ओर औद्योगिक उत्पादन में एक प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, वहीं दूसरी ओर जनवरी में खुदरा मुद्रास्फीति नरम होकर 16 महीने के निचले स्तर 4.06 प्रतिशत पर आ गई। इससे रिजर्व बैंक (आरबीआई) को उपभोग बढ़ाने के लिए ब्याज दर में कटौती करने की गुंजाइश मिल सकती है। जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के दम पर औद्योगिक उत्पादन एक महीने के बाद वृद्धि की राह पर लौट आई। विनिर्माण क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 77.63 प्रतिशत योगदान देता है। इसमें दिसंबर 2020 में 1.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। खनन उत्पादन में आलोच्य महीने में 4.8 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि बिजली उत्पादन में दिसंबर 2020 में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कोविड-19 महामारी के कारण पिछले साल मार्च से औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ा। मार्च में आईआईपी में 18.7 प्रतिशत की गिरावट आई थी। इसके बाद अगस्त 2020 तक औद्योगिक उत्पादन में लगातार गिरावट आई।
सितंबर में आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के साथ, कारखाने के उत्पादन में एक प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। अक्टूबर में आईआईपी 4.2 फीसदी बढ़ा था। नवंबर 2020 में कारखाने के उत्पादन में 2.1 प्रतिशत की गिरावट आई थी, जो 1.9 प्रतिशत गिरावट के शुरुआती अनुमान से अधिक था। सरकार ने 25 मार्च 2020 को कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू किया था। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने नवंबर में कहा था कि पाबंदियों से क्रमिक छूट के साथ, आर्थिक गतिविधियों में अलग-अलग स्तरों पर सुधार हुआ तथा जानकारियां जमा करने की गुणवत्ता भी बेहतर हुई। मंत्रालय ने यह भी कहा था कि महामारी के दौरान के महीनों के आईआईपी आंकड़े की तुलना बाद के महीनों से करना उचित नहीं हो सकता है। दिसंबर 2019 में विनिर्माण क्षेत्र में 0.3 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था। इस दौरान खनन क्षेत्र के उत्पादन में 5.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, लेकिन बिजली उत्पादन 0.1 प्रतिशत बढ़ गया था। आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल से दिसंबर की अवधि में आईआईपी में 13.5 फीसदी की कमी आई है।
पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में इसमें 0.3 प्रतिशत की हल्की वृद्धि दर्ज की ग:ई थी। जनवरी में खुदरा मुद्रास्फीति नरम होकर 4.06 प्रतिशत पर आ गई। इसका मुख्य कारण सब्जियों की कीमतों में कमी आना है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वर्ग में कीमतों में सालाना आधार पर वृद्धि की दर जनवरी 2021 में 1.89 प्रतिशत रही। दिसंबर 2020 में खाद्य मुद्रास्फीति 3.41 प्रतिशत थी। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति तय करते समय खुदरा मुद्रास्फीति की दर पर गौर करता है। संसद ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत रखने की नीतिगत जिम्मेदारी दी है। जनवरी में लगातार दूसरे महीने खुदरा मुद्रास्फीति इस दायरे में रही है। जनवरी 2021 में सब्जियों की कीमतों में और नरमी आई। इनकी मुद्रास्फीति शून्य से 15.84 प्रतिशत नीचे रही। इसी तरह दाल एवं उत्पाद श्रेणी में मुद्रास्फीति नरम होकर 13.39 प्रतिशत पर आ गई। इससे पहले दिसंबर 2020 में सब्जियों की मुद्रास्फीति शून्य से 10.41 प्रतिशत नीचे तथा दाल एवं उत्पाद खंड में 15.98 प्रतिशत रही थी। इसी तरह मांस एवं मछली, अंडे और दूध एवं उत्पाद खंड में मुद्रास्फीति कम होकर क्रमश: 12.54 प्रतिशत, 12.85 प्रतिशत और 2.73 प्रतिशत पर आ गई। ईंधन एवं बिजली श्रेणी में मुद्रास्फीति इस दौरान 2.99 प्रतिशत से बढ़कर 3.87 प्रतिशत पर पहुंच गई।