कनाडा में सिख इतने कैसे बढ़े कि जस्टिन ट्रूडो भारत को दिखा रहे अकड़, चुनाव में लंगड़ी सरकार के लिए बैसाखी बने अल्पसंख्यक

Updated on 15-10-2024 02:47 PM
नई दिल्ली: सिख अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या मामले में भारत और कनाडा के संबंध बदतर हो गए हैं। भारत ने कनाडा से भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा समेत अन्य राजनयिकों को वापस बुला लिया है। इसके साथ ही भारत ने कनाडा के छह राजनयिकों को देश से निष्कासित कर दिया। माना जा रहा है कि अक्टूबर, 2025 में कनाडा में होने वाले आम चुनावों में हार के डर से कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इस तरह के विवादित बयान दे रहे हैं। दरअसल, कनाडा के आम चुनाव में सिख वोट बैंक काफी मायने रखता है। यही वजह है कि वहां की राजनीति में सिखों का दखल काफी बढ़ चुका है। जानते हैं कनाडा में सिखों की अहमियत और ट्रूडो की अकड़ के पीछे क्या राज है?

ट्रूडो सरकार क्या वोट बैंक साधने के लिए लगा रही आरोप


भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, हमें रविवार को कनाडा से एक डिप्लोमैटिक कम्युनिकेशन मिला था। इसमें बताया गया है कि कनाडा में चल रही एक जांच में भारत के उच्चायुक्त और अन्य राजनयिकों का जुड़ाव सामने आया है। भारत सरकार इन बेतुके आरोपों को सिरे से नकारती है। कनाडा की ट्रूडो सरकार वोट बैंक साधने के लिए ऐसा कर रही है। इससे पहले 18 सितंबर को कनाडा की संसद में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने बयान दिया कि निज्जर की हत्या के पीछे भारत सरकार की संभावित संलिप्तता के आरोपों की जांच की जा रही है।

जब ट्रूडो ने अपनी कैबिनेट में 4 सिखों को शामिल किया


जस्टिन ट्रूडो जब वर्ष 2015 में पहली बार कनाडा के पीएम बने तो उन्होंने मजाकिया लहजे में ये कहा था कि भारत की मोदी सरकार से ज़्यादा उनकी कैबिनेट में सिख मंत्री हैं। उस समय ट्रूडो ने कैबिनेट में चार सिखों को शामिल किया था। ये कनाडा की राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ था।

कौन थे हरदीप सिंह निज्जर, जिनकी हुई हत्या


जालंधर निवासी हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून 2023 को कनाडा में गुरुद्वारे की पार्किंग में हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। निज्जर कनाडा के वैंकूवर स्थित गुरु नानक सिख गुरुद्वारा के अध्यक्ष भी थे। निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स के प्रमुख थे और खालिस्तान टाइगर फोर्स के सदस्यों के संचालन, नेटवर्किंग, प्रशिक्षण और वित्तीय मदद मुहैया कराते थे।

कनाडा में सिखों की आबादी इतनी कैसे बढ़ी


कनाडा की आबादी धर्म और नस्ल के आधार पर काफी विविध है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2016 में कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 22.3 फ़ीसदी हो गए थे। वहीं 1981 में अल्पसंख्यक कनाडा की कुल आबादी में महज 4.7 फ़ीसदी थे। इस रिपोर्ट के अनुसार 2036 तक कनाडा की कुल आबादी में अल्पसंख्यक 33 फ़ीसदी हो जाएंगे।

सिख धर्म कनाडा में चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह


सिख धर्म कनाडा में चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है, जिसके लगभग 800,000 अनुयायी हैं। 2021 तक कनाडा की आबादी का 2.1% सिख हो चुके हैं। कनाडा में 16 लाख से ज्यादा भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जबकि भारतीय प्रवासियों की संख्या 7 लाख है। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा भारतीय कनाडा में ही रहते हैं। ये कनाडा की कुल आबादी के 4 फीसदी हैं। ये भारतीय ज्यादातर कनाडा के टोरंटो, वैंकुअर, मांट्रियल, ओटावा और विनीपेग में रहते हैं। मौजूदा वक्त में कनाडा की संसद में भारतीय मूल के 19 लोग हैं। वहीं, 3 सदस्य तो कैबिनेट मंत्री हैं।

क्या खालिस्तानियों को पनाह देता है कनाडा


अंग्रेज लेखक स्टीवर्ट बेल की एक चर्चित किताब है-'कोल्ड टेरर: हाऊ कनाडा नर्चर्स एंड एक्पोर्ट्स टेरेरिज्म अराउंड द वर्ल्ड।' इसमें लिखा गया है कि कनाडा खालिस्तानी, जेहादी जैसे अलगाववादियों, आतंकियों को पैसे की खातिर अपने देश में पनाह देता है। 11 सितंबर, 2011 को पाकिस्तान दौरे के वक्त अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा था कि जो देश अपने घर में सांप पालते हैं, वो दिन दूर नहीं जब यह सांप उनको ही डंस सकता है। ऐसे में कनाडा को यह समझना चाहिए कि आतंकियों या उग्रवादियों से मिले पैसे खुद एक दिन उन्हें ही नुकसान पहुंच सकता है।

पहली बार सिख कनाडा 127 साल पहले पहुंचे


1897 में महारानी विक्टोरिया ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को डायमंड जुबली सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए लंदन आमंत्रित किया था। तब घुड़सवार सैनिकों का एक दल भारत की महारानी के साथ ब्रिटिश कोलंबिया के रास्ते में था। इन्हीं सैनिकों में से एक थे रिसालेदार मेजर केसर सिंह। रिसालेदार कनाडा में बसने वाले पहले सिख थे। उनके साथ ही कुछ और लोगों ने भी कनाडा बसना शुरू किया। भारत से सिखों के कनाडा जाने का सिलसिला यहीं से शुरू हुआ था। तब कुछ ही सालों में ब्रिटिश कोलंबिया 5000 भारतीय पहुंच गए, जिनमें से 90 फीसदी सिख थे।

कनाडा में 1907 से ही भारतीयों पर नस्लीय हमले


1907 तक आते-आते भारतीयों के खिलाफ नस्लीय हमले शुरू हो गए। इसके कुछ साल बाद ही भारत से प्रवासियों के आने पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाया गया। पहला नियम यह बनाया गया कि कनाडा आते वक़्त भारतीयों के पास 200 डॉलर होने चाहिए. हालांकि यूरोप के लोगों के लिए यह राशि महज 25 डॉलर ही थी। इन्होंने अपनी मेहनत और लगन से कनाडा में खुद को साबित किया. इन्होंने मजबूत सामुदायिक संस्कृति को बनाया। कई गुरुद्वारे भी बनाए।

जब कामागाटामारू कांड को लेकर ट्रूडो ने मांगी माफी


सिखों को कनाडा से जबरन भारत भी भेजा गया। सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से भरा एक पोत कामागाटामारू 1914 में कोलकाता के बज बज घाट पर पहुंचा था। इनमें से कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई थी। भारतीयों से भरे इस जहाज को कनाडा में नहीं घुसने दिया गया था। इसके लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 2016 में हाउस ऑफ कॉमन्स में माफी मांगी थी।

लिबरल पार्टी की सरकार के आने से बढ़े सिख


1960 के दशक में कनाडा में लिबरल पार्टी की सरकार बनी तो यह सिखों के लिए भी ऐतिहासिक साबित हुआ। कनाडा की संघीय सरकार ने प्रवासी नियमों में बदलाव किए। इसका असर यह रहा कि भारतवंशियों की आबादी में तेजी से बढ़ी। आज भारतीय-कनाडाई के हाथों में संघीय पार्टी एनडीपी की कमान है।

ट्रूडो को जब सिख समर्थक एनडीपी का साथ मिला


वर्ष 2019 में समय से पहले चुनाव कराए गए। ट्रूडो की लिबरल पार्टी की 20 सीटें कम हो गईं। लेकिन इसी चुनाव में खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को 24 सीटें मिली थीं। इस पार्टी ने ट्रूडो को सत्ता तक पहुंचाया। बैंकुअर, टोरंटो, कलगैरी सहित पूरे कनाडा में गुरुद्वारों का एक बड़ा नेटवर्क है, जो एकमुश्त सिख वोट दिलाने में मदद करता है।

कनाडा में सिखों का वोट बैंक ट्रूडो के लिए अहम


कनाडा में अक्टूबर, 2025 में चुनाव होने हैं। ट्रूडो चाहते हैं कि वहां के सिख उनका समर्थन करें। जस्टिन ट्रूडो 2015 से सत्ता में बने हुए हैं। 2019 और 2021 में ट्रूडो की पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी और वो दूसरी पार्टी के समर्थन से सरकार में हैं, जिन्हें सिखों का समर्थन हासिल है।

दोनों देशों में 59 हजार करोड़ रुपए का कारोबार


2021 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दोनों देशों के बीच 59 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का द्विपक्षीय कारोबार है। इसमें भारत का कनाडा को निर्यात करीब 40 हजार करोड़ रुपए का है। जबकि बाकी 19 हजार करोड़ का भारत कनाडा से आयात करता है।
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