सुशासन - लोकतंत्रीय राज व्यवस्था का सर्वोत्कर्ष - द्विवेदी

Updated on 20-12-2024 01:01 PM

राजनांदगांव ।  शासकीय नवीन महाविद्यालय अर्जुनी एवं शास. शिवनाथ महाविद्यालय राजनांदगांव द्वारा संस्था प्राचार्य क्रमश: डॉ. श्रीमती अंजना ठाकुर एवं डॉ. श्रीमती निर्मला उमरे के प्रमुख संयोजन - संरक्षण में समसामयिक महत्तम परिप्रेक्ष्य में ‘सुशासन’  विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

उल्लेखनीय है कि विशिष्ट विचार संगोष्ठी में नगर के विचारप्रज्ञ चिंतक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी को मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।

संगोष्ठी में उपस्थित महाविद्यालयों के प्राध्यापकगण एवं छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए डॉ. द्विवेदी ने बताया कि सुशासन का सीधा-सरल-सामान्य अर्थ माना जाता है - शुभ, अच्छा, मंगलकारी, वस्तुत: सुशासन किसी राजनीतिक इकाई में लोक कल्याण एवं बहुजन हितकारी नीतियों - योजनाओं के माध्यम से अधिसंख्य जनों के लिए श्रेष्ठतम प्रबंधन के साथ-साथ कानून/न्याय का शासन सहजता से उपलब्ध कराना होता है। वास्तविकता में सुशासन लोकतंत्रीय राज-व्यवस्था का सर्वो-उत्कर्ष होता है।

आगे डॉ. द्विवेदी ने विशेष रूप से स्पष्ट किया कि  ‘सुशासन’ एवं सुशासन दिवस अपने समय काल में सर्वदा सर्वप्रिय एवं सर्वाधिक लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी के जयंती /जन्म दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा वर्तमान यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 2014 में की गई थी। तत्समय से ‘सुशासन राज व्यवस्था’ में एक लोकप्रिय पहचान बन गई है।

राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मान्यता अनुसार  ‘सुशासन’  में नौ विशिष्टताएं समाहित होती है-विधि का शासन, समानता-समावेषण, अधिकाधिक भागीदारी, अनुक्रियता, सर्वमतैक्य-बहुहितीय, प्रभावशीलता, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और निष्पक्ष आंकलन ।

डॉ. द्विवेदी ने सुशासन संदर्भ में वर्तमान प्रदेश-केन्द्र सरकार के लगभग एक वर्षीय शासन पूर्ण होने के संदर्भ में विभिन्न लोकप्रिय-लोकहितकारी कार्य योजनाओं को उनके जीवंत उद्धारणों (महतारी वंदन, किसान समृद्धि, हर गरीब को मुफ्त राशन, हर घर बिजली, नल, स्वच्छ भारत, हर घर शौचालय, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, आवास योजना आदि) से अभिप्रमाणित भी किया।

संगोष्ठी में प्राचार्य द्वय डॉ. अंजना ठाकुर, डॉ. उमरे, प्राध्यापकगणों में डॉ. लहरे, डॉ. कन्नौजे, डॉ. सहारे आदि ने भी प्रभावी वैचारिक सहभागिता की। संगोष्ठी का प्रारंभ छत्तीसगढ़ महतारी के तैलचित्र पर दीप प्रज्जवलन, वंदन से हुआ तथा समापन डॉ. द्विवेदी के प्रति श्रेष्ठ विचार संपे्रषण एवं मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में सक्रिय उपस्थिति-सहभागिता के लिए आभार प्रदर्शन से हुआ।


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