नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकारिता की आजादी संविधान में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भारत की स्वतंत्रता उस समय तक ही सुरक्षित है, जब तक सत्ता के सामने पत्रकार किसी बदले की कार्रवाई का भय माने बिना अपनी बात कह सकता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने ये कड़ी टिप्पणियां मंगलवार को रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी के मामले में सुनवाई के दौरान की। पीठ ने कहा कि एक पत्रकार के खिलाफ एक ही घटना के संबंध में अनेक आपराधिक मामले दायर नहीं किए जा सकते हैं। उसे कई राज्यों में राहत के लिए चक्कर लगाने के लिए बाध्य करना पत्रकारिता की आजादी का गला घोंटना है।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दिए गए अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और आपराधिक मामले की जांच के संबंध में भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों का भी जिक्र किया। पीठ ने कहा, पत्रकारिता की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दी गई संरक्षित अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। याचिकाकर्ता एक पत्रकार है। संविधान से मिले अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए याचिकाकर्ता ने टीवी कार्यक्रम में अपने विचार जताए थे। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये 56 पेज का निर्णय सुनाते हुए पीठ ने अर्णब को तीन सप्ताह के लिए संरक्षण प्रदान करते हुए नागपुर से मुंबई ट्रांसफर किए गए मामले को छोड़कर अन्य सभी एफआईआर रद्द कर दीं। उनके खिलाफ दर्ज मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग को ठुकरा दिया।