हरियाणा के पूर्व CM ओपी चौटाला का निधन:शिक्षक भर्ती घोटाले में तिहाड़ जेल गए

Updated on 20-12-2024 01:26 PM

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं इनेलो सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला का निधन हो गया है। वे 89 साल के थे। शुक्रवार को वे गुरुग्राम में अपने घर पर थे। उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जिसके बाद साढ़े 11 बजे उन्हें गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में लाया गया। करीब आधे घंटे बाद दोपहर 12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

ओपी चौटाला पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल की 5 संतानों में सबसे बड़े थे। उनका जन्म 1 जनवरी, 1935 को हुआ। वे 5 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। शुरुआती शिक्षा के बाद ही चौटाला ने पढ़ाई छोड़ दी थी। 2013 में शिक्षक भर्ती घोटाले के दौरान जब चौटाला तिहाड़ जेल में बंद थे, तब उन्होंने 86 साल की उम्र में 10वीं-12वीं की परीक्षा पास की।

आज शुक्रवार (20 दिसंबर) शाम तक उनका पार्थिव शरीर सिरसा स्थित उनके पैतृक गांव चौटाला लाया जाएगा। जहां उसे अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। इसके बाद गांव में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।

पहला चुनाव हार गए थे चौटाला, उपचुनाव में जीते ओमप्रकाश चौटाला की चुनावी राजनीति की शुरुआत 1968 में शुरू हुई। उन्होंने पहला चुनाव देवीलाल की परंपरागत सीट ऐलनाबाद से लड़ा। उनके मुकाबले पूर्व सीएम राव बीरेंद्र सिंह की विशाल हरियाणा पार्टी से लालचंद खोड़ ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में चौटला हार गए।

हालांकि हार के बाद भी चौटाला शांत नहीं बैठे। उन्होंने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाया और हाईकोर्ट पहुंच गए। एक साल चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने लालचंद की सदस्यता रद्द कर दी। 1970 में उपचुनाव हुए तो चौटाला ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बने।

पिता केंद्र सरकार में गए तो चौटाला को मुख्यमंत्री बना दिया साल 1987 के विधानसभा चुनाव में लोकदल को 90 सीटों में से 60 पर जीत मिली। ओपी चौटाला के पिता देवीलाल दूसरी बार CM बने। दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में केंद्र में जनता दल की सरकार बन गई। जिसमें वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। देवीलाल भी इस सरकार का हिस्सा बने और उन्हें उपप्रधानमंत्री बनाया गया। अगले दिन दिल्ली में लोकदल के विधायकों की बैठक हुई। जिसमें ओपी चौटाला को सीएम के लिए चुन लिया गया।

पहली बार CM बन पिता की सीट पर लड़े, 2 बार हिंसा हुई 2 दिसंबर 1989 को ओमप्रकाश चौटाला पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। तब वे राज्यसभा सांसद थे। CM बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने उन्हें अपनी पारंपरिक सीट महम से चुनाव लड़वाया, लेकिन खाप पंचायत ने इसका विरोध शुरू कर दिया।

27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई, जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की भेंट चढ़ गई। चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर दोबारा वोटिंग कराने के आदेश दिए। जब दोबारा वोटिंग हुई, तो फिर से हिंसा भड़क उठी। चुनाव आयोग ने फिर से चुनाव रद्द कर दिया। लंबे सियासी घटनाक्रम के बाद 27 मई को फिर से चुनाव की तारीखें तय की गईं, लेकिन वोटिंग से कुछ दिन पहले निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या हो गई।

चौटाला ने दांगी के वोट काटने के लिए अमीर सिंह को डमी कैंडिडेट बनाया था। अमीर सिंह और दांगी एक ही गांव मदीना के थे। हत्या का आरोप भी दांगी पर लगा। जब पुलिस दांगी को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची, तो उनके समर्थक भड़क गए। पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चली दीं। इसमें 10 लोगों की मौत हो गई।

पहली बार में सीएम बनने के साढ़े 5 महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा महम में हुई इस हिंसा का शोर संसद में भी गूंजने लगा। प्रधानमंत्री वीपी सिंह और गठबंधन के दबाव में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री देवीलाल को झुकना पड़ा। पहली बार मुख्यमंत्री बनने के साढ़े 5 महीने बाद ही ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह बनारसी दास गुप्ता को CM बनाया गया।

दूसरी बार 5 दिन में ही मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा कुछ दिन बाद चौटाला दड़बा सीट से उपचुनाव जीत गए। बनारसी दास को 51 दिन बाद ही पद से हटाकर चौटाला दूसरी बार CM बन गए। मगर, महम में हुई हिंसा का मामला ठंडा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री वीपी सिंह भी चाहते थे कि चौटाला पर जब तक केस चल रहा है वे CM न बनें। मजबूरन 5 दिन बाद ही चौटाला को फिर से पद छोड़ना पड़ा। अब की बार उन्होंने मास्टर हुकुम सिंह फोगाट को CM बनाया।

केंद्र की मदद से तीसरी बार सिर्फ 15 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने साल 1990 के बाद प्रधानमंत्री वीपी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन दे रही भाजपा ने राम मंदिर बनाने के लिए रथयात्रा निकालने का फैसला किया। वीपी सिंह ने आडवाणी से रथयात्रा न निकालने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने। इसके बाद आडवाणी को आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर से गिरफ्तार कर लिया गया।

गिरफ्तारी से नाराज भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस से लिया। 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह की सरकार गिर गई। इसके बाद जनता दल से चंद्रशेखर पीएम बन गए और देवीलाल को उपप्रधानमंत्री बना दिया। इसके चार महीने बाद यानी, मार्च 1991 में देवीलाल ने हुकुम सिंह को हटाकर ओमप्रकाश चौटाला को तीसरी बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया।

इस फैसले से राज्य में पार्टी के कई विधायक नाराज हो गए। कुछ विधायकों ने पार्टी भी छोड़ दी। नतीजा ये हुआ कि 15 दिनों के भीतर ही सरकार गिर गई। राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया। 15 महीने के भीतर तीसरी बार चौटाला ने CM पद से इस्तीफा दिया था।


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