दुर्ग!प्रायवेट स्कूलों के
द्वारा मांग जा
रही फीस को
लेकर पूरे प्रदेश
में पालकों द्वारा
विरोध किया जा
रहा है और
हाईकोर्ट ने भी
सिर्फ ट्यूशन फीस
लेने की अनुमति
प्रायवेट स्कूलों को दे
दिया है, लेकिन
इसके बावजूद प्रायवेट
स्कूल और पालकों
के बीच टकराव
थमने का नाम
नहीं ले रहा
है। छत्तीसगढ़ पैरेंट्स
एसोसियेशन के प्रदेश
अध्यक्ष क्रिष्टोफर पॉल पॉल
का कहना है
कि शिक्षा का
अधिकार कानून की धारा
8 के अंतर्गत बच्चों
को नि:शुल्क
शिक्षा उपलब्ध कराने के
राज्य सरकार बाध्य
है।
श्री पॉल ने बताया कि स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा 6500 प्रायवेट स्कूलों में लगभग 2.85 लाख बच्चों को आरटीई के अंतर्गत प्रवेश दिलाया गया है, जिसका दो वर्ष का ट्यूशन फीस/शैक्षणिक फीस विभाग द्वारा भुगतान नहीं किया गया है, इसके बावजूद प्रायवेट स्कूलों द्वारा इन बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, लेकिन जो बच्चे पैसा, फीस देकर पढ़ रहे और जो कोरोना महामारी के कारण विगत तीन माह का फीस नहीं जमा कर पा रहे है, उन्हें शिक्षा, ऑनलाईन से वंचित किया जा रहा है, यदि आरटीई के बच्चे जो दो वर्ष से बिना फीस दिए पढ़ रहे है तो अन्य बच्चों को भी पढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि शिक्षा पाना प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है, लेकिन प्रायवेट स्कूलों के द्वारा दैनिक अखबारों में लाखों रूपये का विज्ञापन देकर खुलेआम ऐलान कर बच्चों को ऑनलाईन क्लासेस से वंचित किया जा रहा है। सरकार मौन है और मुखदर्शक बनकर तमाशा देख रही है।
श्री पॉल का कहना है कि सरकार द्वारा आरटीई के अंतर्गत प्रवेशित बच्चे अगर बिना फीस दिए प्रायेवेट स्कूलों में पढ़ सकते है, तो अन्य बच्चों को फीस नहीं दिए जाने पर क्यों शिक्षा से वंचित किया जा रहा है? क्या आरटीई के बच्चे और अन्य बच्चों के लिए अगल-अगल कानून है? क्या संविधान की अनुच्छेद 21 में सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा पाने का अधिकार नही है? क्या राज्य सरकार सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए बाध्य नहीं है? स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों के साथ इस प्रकार का भेदभाव किया जा रहा है, जो शिक्षा का अधिकार कानून का स्पष्ट रूप से उल्लघंन है।