काबुल। अफगानिस्तान पर तालिबान की अंतरिम सरकार भले ही गठित हो गई हो पर सत्ता को लेकर मतभेद सामने आने लगा है। ऐसा इसलिए कि पहली बार किसी विदेशी नेता ने काबुल की यात्रा की है। कतर के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुर रहमान अल सानी एक प्रतिनिधिमंडल के साथ काबुल की यात्रा पर पहुंचे। इस दौरान शेख मोहम्मद ने तालिबानी पीएम मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद और गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी समेत तमाम तालिबानी नेताओं से मुलाकात की। इस बैठक के दौरान कतर में मुख्य वार्ताकार रहे मुल्ला बरादर और उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई दोनों ही नदारद थे। इन प्रमुख नेताओं के गायब रहने से अटकलों का बाजार गरम हो गया है।
यही नहीं मुल्ला बरादर के हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों के साथ संघर्ष में घायल होने की खबरों के बाद से ही वह सार्वजनिक रूप से नहीं दिख रहा है। सोशल मीडिया में चल रही अटकलों में मुल्ला बरादर के बुरी तरह से घायल होने या मारे जाने का दावा किया जा रहा है। हालांकि इसकी अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हो पाई है। उधर, भारत के आईएमए में पढ़े उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई भी अपना कद घटाए जाने से खफा बताए जा रहे हैं। इससे पहले आई खबरों में कहा गया था कि शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई को विदेश मंत्री बनाया जाएगा लेकिन उन्हें उप विदेश मंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा है। माना जा रहा है कि मुल्ला बरादर के अमेरिका से नजदीकी और शेर मोहम्मद के भारत के साथ बातचीत के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के कान खड़े हो गए और उसने इन दोनों ही के पर कतर दिए। मुल्ला बरादर की हक्कानी नेटवर्क के नेताओं से संघर्ष हुआ था जिसे आईएसआई ने ही पाल रखा है।
खबरों के मुताबिक का मुल्ला बरादर का हक्कानी नेटवर्क के नेता अनस हक्कानी और खलील हक्कानी के साथ झड़प हुई थी। रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया था कि बरादर अब पाकिस्तान में इलाज करा रहा है। मुल्ला बरादर ने ही अपने बहनोई मुल्ला उमर के साथ मिलकर तालिबान की स्थापना की थी। तालिबान का सह-संस्थापक और मुल्ला उमर के सबसे भरोसेमंद कमांडरों में से एक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को 2010 में पाकिस्तान के कराची में गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश और तालिबान के साथ डील होने के बाद पाकिस्तान ने इसे वर्ष 2018 में रिहा कर दिया था। तालिबान ने साल 2013 में कतर की राजधानी दोहा में राजनीतिक कार्यालय खोला था। कतर तुर्की के साथ मिलकर काबुल हवाई अड्डे को तकनीकी सहायता भी मुहैया करा रहा है। इतने महत्वपूर्ण देश के उप प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के दौरान मुल्ला बरादर के न रहने से तालिबान नेताओं में मतभेद को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं।